प्रेम गीत
घटाओं में खुशबू बिखरने लगी है हंसी तेरे अधरो पे खिलने लगी है सरोवर में खिलते कमल पुष्प जैसे नयन ये कथानक नया लिख रहे हैं गुलाबी ये गालों की रंगत है जैसे प्रकृति ने स्वयं ही इन्हें रंग दिए हैं घने गेसुओं को संवारा है जबसे मेरी उलझने भी सुलझने लगी हैं घटाओ में खुशबू बिखरने लगी है हंसी तेरे अधरों पे खिलने लगी है (१) जेहन में नयन ये बसे हैं तुम्हारे गहन इस अंधेरे में दीपक के जैसे नजर भर के जिसपे नजर तुमने डाली हृदय को वो अपने संभाले भी कैसे सदा निष्कपट नेत्र, निश्छल निगाहें निहित प्रेम से ही निखरने लगी हैं घटाओ में खुशबू बिखरने लगी है हंसी तेरे अधरों पे खिलने लगी है (२) © दीपक शर्मा ’सार्थक’