रमेश वाजपेई विरल
आदि शंकर की तरह निःस्वार्थ सेवा में लगे हैं
ज्योति शिक्षा की जलाकर हर लिया तम, हर हृदय से
राष्ट्र सेवा में सकल सर्वस्व अर्पित कर रहे हैं
बिन किसी अवलंब के ही छू लिया है गगन को भी
खुद के ही पुरुषार्थ से वट वृक्ष के जैसे खड़े हैं
जटिलता की भीड़ में जो हैं ’विरल’, पर उर सरल
प्रतिपल प्रबल आवेग से निर्भीक होकर के बढ़े हैं
हो परिस्थिति कोई भी पर नित हंसी अधरों पे जिनके
दृष्टि सम्यक, सौम्यता की मूर्ति वो सबको लगे हैं
राम जिनके ईश हैं, वो ’रमेश’ होकर राममय
हर ऋतु में वो ऋतुराज बनकर राष्ट रौशन कर रहे हैं
©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’
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