अरविंद सिंह
हर हेतु वो उपलब्ध होकर
प्राण वायु की तरह
नि:स्वार्थ सेवा में लगे हैं !
कष्ट कितने भी हो लेकिन
नित हँसी अधरों पे लेकर
ग़म खुशी जो भी मिले वो
साथ में लेकर चले हैं !
कार्य कोई भी करें ये
किंतु नैसर्गिक हैं शिक्षक
शैक्षणिक तकनीक में सब
वो भली भाँति ढले हैं !
प्रेम के पोखर के ऊपर
हैं खिले ’अरविंद’ जैसे
वैसी ही अनुभूति से
’अरविंद जी’ हमको मिले हैं !
©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’
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