मास्टर साहब (भाग 4)

एक शायर का शेर जो मुझे बहुत पसंद है वो कुछ इस तरह है –
" इजहारे मोहब्बत पे अजब हाल है उनका
  आंखे तो रजामंद है.. पर लबों पर ना है !"
कुछ ऐसा ही हाल हमारे विभाग का भी है। वो शिक्षकों  की हर मांग पर रजामंद तो दिखते हैं, पर अंत में उनके श्री मुख( लबों) से ना ही फूटता है।
और इस पर भी किसी नाखरीली बीबी की तरह न निकुर करते–करते उन्होंने अंतर्जनपदीय स्थानांतरण तो किया...पर क्या खाक किया !
शिक्षक खास कर पुरुष शिक्षक मुंह खोले रह गया और मलाई कोई और चाट गया। ये ट्रांसफर अंतर्जनपदीय स्थानान्तरण की जगह अंतर्राष्ट्रीय स्थानांतरण हो गया..इतना टिटम्बा तो अमेरिकन वीज़ा पाने में नहीं लगता जितना इस ट्रांसफर में था। और इसका परिणाम ये हुआ की अपने गृह जनपद जाने की आस लगाए शिक्षकों का हाल किसी दूसरे ग्रह पर घर बसाने जैसा हो गया।
खैर अब वो अंतःजनपदीय और म्यूचुअल ट्रांसफर में लगे हैं। लेकिन सच ये है की म्यूचुअल मिलना जीवन साथी मिलने से भी ज्यादा कठिन है। क्योंकि शादी के लिए तो यदि 24 गुण मिल जाए तो हो जाती है पर म्यूचुअल के लिए पूरे 36 गुण मिलना आवश्यक है। इसलिए इसका हाल भी अंतर्जनपदीय ट्रांसफर जैसा ही होगा यानी ढाक के तीन पात!
उधर वो प्रमोशन करने के लिए भी बेकरार हो रहे हैं। लेकिन ये प्रमोशन न हो गया..लूज मोशन हो गया ! महीनो से हो रहे हैं..अभी तक हुए ही नहीं। 
दामिनी मूवी के सनी देवल की स्टाइल में बोले तो..."तारीख पर तारीख...तारीख पर तारीख" प्रमोशन की जगह बस यही हो रहा है।
लेकिन हम भी कम नहीं है.....हम इंतजार करेंगे!
और फिल्मी स्टाइल में कहें तो –
"हम इंतजार करेंगे तेरा ( प्रमोशन) कयामत तक,
खुदा करे की कयामत हो...और तू आए !"
वैसे भी इंतजार का अपना मज़ा है..जैसे सबरी ने भगवान का किया...जैसे सीता ने राम का किया..! 
वैसे ही हम भी प्रमोशन का करेंगे! 
वही दूसरी तरफ बैकग्राउंड में मेरी आत्मा चीख चीख के बोल रही है, " अरे मूर्ख! कर्म कर..फल की इच्छा मत कर!"
लेकिन सच ये है की मेरी घोर इच्छा है कि अब मुझे प्रमोशन वाला फल चाहिए। और अब ये मेरी मासूमियत की इंतहा है की अब मैं अपने विभाग पर भरोसा कर रहा हूं की ये जल्दी ही प्रमोशन कर करेंगे( हालाकि मुझे ये भी पता है की प्रमोशन पैदा होगा..लेकिन प्रीमेच्योर बेबी जैसा होगा। यानी अविकसित..बस नाम का)
सच कहूं तो भरोसा करना भी एक गुण है, जो सबमें नहीं होता..लेकिन मेरा मानना है की , " शक करके परेशान होने से अच्छा है...,भरोसा करके बर्बाद हो जाओ!"
कुछ ऐसा ही भरोसा मुझे अपने विभाग पर है।
रात हो गई है...अब सो जाना चाहता हूं। लेकिन नुसरत फतेअली खान की एक गजल बज रही है–
सादगी तो हमारी ज़रा देखिए..
ऐतबार आपके वादे पर कर लिया..
बात तो सिर्फ एक रात की थी मगर
इंतजार आपका उम्र भर कर लिया..

जिक्र एक बेवफा और सीतमगर था
आपका ऐसी बातों से क्या वास्ता
आप तो बेवफा और सीतमगर नहीं
आप ने किस लिए मुंह उधर कर लिया..
सादगी तो हमारी ज़रा देखिए
ऐतबार आपके वादे पर कर लिया.....

खैर.. ये बस गाना है..या मेरी फीलिंग..भगवान जाने !
आप भी सुनिए अच्छा लगेगा। तब तक के लिए शुभ रात्रि।
क्रमशः....

                      ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

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