मेरा वजूद

सलीके से सहेजे हैं, सहे हैं अब तलक जो ग़म
फकत खुशियों भरा दामन, मेरे दिल को नहीं भाता !

खयाली सब्जबागों में भटक के गुम न हो जाऊं
हकीकत से कभी अपनी नहीं नजरें चुराता !

उजालों में ही चलने का नहीं आदी हुआ हूं
अंधेरों के सफर में भी नहीं मैं लड़खड़ाता !

मोहोब्बत में कोई कह दे तो मैं सजदे भी कर लूं
महज़ मतलबपरस्ती में किसी के दर नहीं जाता !

दुवाओं का असर होता है गर फरियाद सच्ची हो
मगरमच्छों के आसूं देख कर कोई नहीं आता !

कोई हमराह हो या फिर सदा तन्हां रहूं मैं
कभी बस दिल्लगी में ही नहीं दिल को लगाता !


                     ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’



















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