फिरंगी वेशभूषा

कोई कितना भी सज धज ले
फिरंगी भेष भूषा में,
अधूरा है अगर माथे पे इक 
बिंदी नहीं आती !

मिडिल क्लासों की चाहत से 
वो अब बच कर निकलती है
उसे इंग्लिश का रोना है
उन्हें हिंदी नहीं आती !

उसे बेअबरू कैसे 
सरे महफिल में कर दूं मैं
खयालों में भी जिसकी छवि
कभी गंदी नहीं आती !

टके के भाव है गेंहू
किसानों के यहां जब तक
दलालों तक पहुंचने पर
कभी मंदी नहीं आती !

अमीरों के हवा महलों
के आगे बिछ रहीं सड़कें
गरीबों के दुवारे एक
पगडंडी नहीं आती

जो कन खाके था जोड़ा धन
वो कालाधन लगे उनको
करप्शन से बने नोटों पे
अब बंदी नहीं आती !

           ©️  दीपक शर्मा ’सार्थक’










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