सब्स्टीट्यूट

कभी किसी रोज अचानक
कोई मिल जाता है
बिना किसी प्रयास के
बिना किसी प्लानिंग के

अंजाने में ही सही
उसका वास्तविक स्वरूप,
हृदय के अंतःतल में बस जाता है
बिना कोई शोर के
बिना किसी हलचल के

लेकिन नहीं समझते उसकी अहमियत
अहम में खो देते हैं 
दिखाकर बचानका सा 
और बेहूदा सा अपना एटीट्यूड 

उसके बाद उम्र के उस मोड़ से लेकर
उम्र के आखरी छोर तक
पागलों की तरह, हर किसी में
ढूढते फिरते हैं,
बस उसी का सब्स्टीट्यूट !

              ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

Comments

Popular posts from this blog

एक दृष्टि में नेहरू

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

क्या जानोगे !