धन्यभाग्य हैं ये सेवता के तिमिर को नष्ट कर
जो क्षेत्र के लिए प्रकाश पुंज के समान हैं

चल रही विकास की बयार आज हर तरफ
ये सत्य है, प्रत्यक्ष को न चाहिए प्रमाण है

दो तरह की बात से हैं दूर, दूर झूठ से 
हृदय से और कथन से नित्य एक ही समान हैं।

निर्बलों के बल गरीब के सदा से हमनवाज
दुष्ट दुर्जनों की बंद कर दिया दुकान है

राम भक्त राम में रमे हैं रात दिन सदा
हृदय में साक्षात जैसे राम विद्यमान हैं

बना रहे ये साथ आम जन की ऐसी भावना
सकल समाज भय रहित जो साथ उसके ’ज्ञान’ हैं 

                      ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’












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