मेरा आंगन मेरे बच्चे

अब निरक्षरता हुई गुजरे हुए कल का जमाना
घर के आंगन की तरह स्कूल का मौसम सुहाना !

नवनिहालो को मिले निज मात्र भाषा में ही शिक्षा 
गीत कविता से सजी स्कूल की हर एक कक्षा
खेलते और कूदते हैं बोझ न लगाती परीक्षा
अब अशिक्षा और कुपोषण से हुई बच्चो की रक्षा
हो निपुण हर एक बच्चा लक्ष्य ये हमने है ठाना
घर के आंगन की तरह स्कूल का मौसम सुहाना !

कल्पनाओं को निखरने के लिए अवसर मिला है
फूल की तरह सभी बच्चों का अब चेहरा खिला है
सबको शिक्षा मिल रही अब न कोई शिकवा गिला है
स्वच्छ लगती है जमीं और आसमा जैसे धुला है
सज रहा बचपन यही सबसे बड़ा अपना खजाना
घर के आंगन की तरह स्कूल का मौसम सुहाना !

अब निरक्षरता हुई गुजरे हुए कल का जमाना
घर के आंगन की तरह स्कूल का मौसम सुहाना !

                            ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’
                                प्रा वि अभनापुर
                 





Comments

Popular posts from this blog

एक दृष्टि में नेहरू

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

क्या जानोगे !