खामोश लहज़ा
जरूरी नहीं है कि बोला ही जाए !
ज़हर ही ज़हर दिख रहा जिंदगी में
तो क्यों न तबीयत से घोला ही जाए !
दफन है जो किरदार सदियों से दिल में
परत दर परत उसको खोला ही जाए !
ज़माने से बैठे हैं चौखट पे तेरी
चलो अब कहीं और डोला ही जाए !
ये माना है ग़ुरबत तो क्या इसका मतलब
मोहब्बत को दौलत से तोला ही जाए !
©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’
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