हृदय की जटिल प्रकिया

हृदय से हृदय को छुएं भी तो कैसे
सुना है बहुत ही जटिल प्रक्रिया है

किसी के हृदय पे अहम का है पर्दा
कहीं पर वहम ही परछाइयां हैं
कहीं तो हृदय की जगह पे है पत्थर
कभी दुनियादारी की पाबंदियां हैं 
ये संवेदनाएं सुनाएं भी किसको
ये मतलबपरस्ती कि ही बस्तियां हैं
हृदय से हृदय को छुएं भी तो कैसे
सुना है बहुत ही जटिल प्रक्रिया है !

कहीं उलझनों का बिछा जाल है तो
किसी के हृदय में भरी है उदासी
द्रवित है कोई दर्द में इक क़दर की
दिखे है उसे बस निराशा ख़ुमारी
किसी को किसी पे भरोसा नहीं है
महज स्वार्थपरता से ही सब क्रिया है
हृदय से हृदय को छुएं भी तो कैसे
सुना है बहुत ही जटिल प्रक्रिया है !

कोई प्रेम को जो उजागर भी कर दे
तो दूषित प्रथाएं निगल जाएं उसको
पसोपेश में ही फंसे हैं यहां सब
कोई हाल-ए-दिल भी सुनाए तो किसको
ये उलझन, ये पीड़ा, ये आंसू सभी के
हृदय में सहज ही कोई भर दिया है
हृदय से हृदय को छुएं भी तो कैसे
सुना है बहुत ही जटिल प्रक्रिया है !

                © दीपक शर्मा ’सार्थक’




Comments

Popular posts from this blog

एक दृष्टि में नेहरू

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

क्या जानोगे !