कठपुतली

चमकने की हवस से ग़र मिले फुर्सत, ज़रा देखो
तराशे जा रहे हो या कि कटपुतली हो हाथो की !

जिसे दिलकश समझते हो, वो बातों का सिकंदर है
जो बस बाते बनाए, क्या है कीमत उसके बातों की !

यूं आंखें बंद करके कर रहे सजदे, संभल जाओ
ज़रा सोचो हकीकत क्या है इन सारे फसादों की !

जरूरी तो नहीं वो बोलता है जो, सभी सच हो
तुम्हें लगने नहीं है दी भनक अपने इरादों की !

जो वादे कर रहे तुमसे, सुनहरा कल बनाएंगे
कपट मतलबपरस्ती से बनी फ़ेहरिस्त वादों की !

सफेदी की लिए चमकार जो दिन में भटकते हैं
घिनौनी है बहुत उनमें छुपी उन्माद, रातों की !


                        ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’








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