सफलता का सूरज

शहर की सबसे पॉश कालोनी का गटर जाम हो जाना एक बड़ी घटना थी। और हो भी क्यों न.. गरीब की बस्ती में, हैजा अगर सौ पचास लोगो को निगल भी जाए, तो किसी का ध्यान नहीं जाता। लेकिन वो ऑफिसर कालोनी थी। जहां का गटर बरसात में जाम हो गया था। इससे पानी सड़क पर आ गया था। और ये एक बड़ी घटना थी।
खैर.. उस गटर के अंदर घुस कर, उसमे जमे कचरे को साफ करने के लिए, जल्दी ही किसी मजदूर की जरूरत आन पड़ी थी। और ऐसे में बगल की गंदी बस्ती में रहने वाले नंदू को आनन–फानन में बुलाया गया।
नंदू वहां मौके पर पहुंचकर और उस गटर को देख कर वहां खड़े नगर पालिका के कर्मचारी से बोला, "साहब ये तो पूरी तरह चोक हो गया है..इसके अंदर घुस कर सफाई करनी पड़ेगी ?"
वो कर्मचारी झुंझलाहट में बोला, " हां, तो इसमें दिक्कत क्या है ?.. इसके अंदर जाओ और साफ करो। वैसे भी ऊपर से बहुत प्रेशर है।"
नंदू थोड़ा झिझक कर बोला, " लेकिन साहब इस काम को करने का रुपिया कितना मिलेगा ?"
नगर पालिका का कर्मचारी थोड़ा ऐंठ कर बोला, " तुमको बहुत मक्कारी सूझ रही है।500 रुपिया मिलेगा..जितना सबको मिलता है। अगर न करना हो तो बताओ किसी दूसरे को बुला ले..तुम्हारे जैसे बहुत लोग घूम रहे हैं ये काम करने को।"
नंदू ने बगल में खड़े अपने बेटे सूरज को देखा। फिर अचानक उसकी आखों के सामने वो दृश्य घूम गया, जिसमे उसका बेटा सूरज बगल में रहने वाले जमीदार  के घर की बाउंड्री में चिपक कर, आश्चर्य और आनंद के मिश्रित भाव वाले चहरे के साथ, उनके लड़को को, बच्चो वाली छोटी साइकिल चलाते हुए दूर से देखा करता था। वो कभी उनकी बाउंड्री से घर के अंदर नहीं जाता था। क्योंकि उस अबोध बच्चे को भी पता था, बाउंड्री के अंदर घुसकर साइकिल को छूना अपराध है।लेकिन नंदू उस साइकिल के प्रति अपने बच्चे के प्रेम को अच्छे से जानता था।इसलिए उसके मन में खयाल आया..अगर ये गटर साफ करने का सही पैसा मिल जायेगा तो बेटे के लिए साइकिल खरीद लूंगा।
ये सोचकर वो नगर पालिका के कर्मचारी के आगे हाथ जोड़ कर विनम्र भाव से बोला, "अरे नहीं साहब,..,ये काम थोड़ा मेहनत का था..इसीलिए पैसे के बारे में पूछ लिया, बाकी आप टेंशन मत लो, अभी इसे साफ किए दे रहा हूं।"
इतना कहकर उसने गटर के अंदर ऐसे छलांग मारी जैसे कोई संगम में छलांग मारता हो। गटर के अंदर सचमुच बहुत ढेर सारी गंदगी इकट्ठा को गई थी। जिसको साफ करते–करते वो भी पूरी तरह गंदगी में नहा गया।
नंदू जब गटर की सफाई करके बाहर निकला तो नगर पालिका के उस कर्मचारी ने अपनी नाक सिकोड़कर दूर से ही 500 रुपिए नंदू के आगे फेंकते हुए और लगभग उसे डांटते हुए बोला, " अरे–अरे....ये क्या कर रहा है। मुझसे दूर ही रह। ले अपने पैसे उठा और निकल यहां से।"
दूर खड़ा सूरज ये सब बहुत ध्यान से देख रहा था। वो बगल के प्राइमरी स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ता था लेकिन पता नहीं उसके अंदर इतनी समझ कहां से पैदा हो गई की उसे अपने पिता (नंदू) के साथ उस कर्मचारी द्वारा की गई ये हरकत अच्छी नहीं लगी।
खैर नंदू सरकारी नल में नहा धोकर और वो पैसा उठाकर सूरज के साथ घर की ओर चल पड़ा।
सूरज जब उदास मन से घर पहुंचा तो उसकी मां ने पुचकार कर पूछा, "क्या हुआ बेटा! आज तेरा मुंह क्यों लटका हुआ है?"
सूरज ने अपनी मां को उस नगर पालिका के कर्मचारी द्वारा अपने पिता के साथ किए गए दुर्व्यवहार के बारे में बताया और फिर उदास होकर बोला, " मां! आखिर ये बड़े लोग इतने बुरे क्यों होते हैं।"
सूरज की पूरी कहानी सुनकर उसकी मां ने सजल नयन के साथ उसको अपने गले से लगा लिया और बोली, " कोई बात नहीं बेटा.. हर समाज में अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं। लेकिन तुम लोगों की अच्छाई पर ध्यान दो। तुम ये सोचो कि तुम्हारे पिता जी तुमसे कितना प्यार करते हैं। वो तुम्हारे लिए गटर में भी उतरने को तैयार हैं।"
फिर वो सूरज की ओर मुस्कराकर देखते हुए बोलीं, "और फिर एक दिन जब तुम पढ़–लिख कर बड़े आदमी बन जाना तो अपने से छोटे लोगों के प्रति भी सम्मान का भाव रखना। तुम उस नगर पालिका के कर्मचारी जैसे मत बनना।" 
सूरज भी अपनी मां की बात सुनकर मुस्कुरा दिया।
दिन ढल चुका था..अब सूरज को नीद भी आ रही थी।लेकिन उसपर मां की बातों का बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उसने मन ही मन ठान लिया कि एक दिन वो पढ़ लिख कर एक अच्छा और सफल इंसान जरूर बनेगा।
बगल में लेटी मां उसके माथे पर दुलार से हाथ फेरते हुए उसको सुलाने के लिए हल्की हल्की थपकी देते हुए गुनगुनाने लगी..!
इसी तरह दिन महीने साल बीतने लगे। सूरज अपने गहन अध्ययन और अपनी मां द्वारा दी गई शिक्षा कि "हमेशा अच्छे सपने देखो और नाकारामक विचारों से दूर रहो" की बदौलत सफलता के पायदान चढ़ता गया।
आज  यूपीएससी के परिणाम घोषित हुए थे। सूरज एक अच्छी रैंक के साथ एग्जाम में सफल हुआ था।अपना रिजल्ट देख कर वो भावुक हो गया और उसकी आंखें भर आई। उसने ये खुशखबरी अपनी मां को सुनाई।
मां पढ़ी लिखी नहीं थी..लेकिन वो सूरज के चहरे के भाव खूब अच्छे से पढ़ना जानती थी। उनको अहसास हो गया था कि आज उनके बेटे ने कोई बहुत बड़ा काम किया है।
इसलिए वो सूरज को ढेर सारे आशीर्वाद देते हुए बोली, "बेटा ऐसे ही अपने माता पिता और देश का नाम रौशन करो..और एक अच्छे इंसान बनो।"

                             ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’






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