शरद यादव

शब्द तक ही रोष का
प्राकट्य सीमित है जहां पर
किंतु उर में प्रेम सिंचित
और हृदय निष्पाप है 

धर्म आडंबर के ऊपर 
दृष्टि आलोचक के जैसी
पूर्वाग्रह से है दूरी
खुदपे नित विश्वास है

कार्य के वाहक हैं
हर कामों को करते चित्त से
वो सूचना प्रौद्योगिकी में
हर तरह से पास हैं।

जो शशि की भांति चमके
’शरद’ ऋतु की पूर्णिमा में
वो ’शरद’ उन्नति करें
ये सार्थक की आस है

               ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’







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