राम हैं त्याग..त्याग हैं राम

राम बसे हैं त्याग में,जग
 ढूंढे उनको अधिकारों में

जिसने त्याग दिया सिंहासन
तत क्षण जैसे तिनका सा 
राष्ट्रधर्म पालन में जिसने
त्याग किया निज वनिता का
त्याग किया सर्वस्व सुखों का
चले सदा अंगारों में
राम बसे हैं त्याग में, जग
ढूंढे उनको अधिकारों में 

कर्तव्यों की राह पे चलकर
राम ने यश को पाया था
अधिकारों की जगह राम ने
त्याग का पथ अपनाया था
मरा–मरा जप रहे भूलवश
लोग घने अंधियारों में
राम बसे हैं त्याग में, जग
ढूंढे उनको अधिकारों में 

राम के नाम पे अधिकारों का
जो षड्यंत्र चलाते हैं
भूमि के टुकड़े की खातिर
आपस में सबको लड़वाते हैं
राम हैं तीनों लोक के स्वामी
नेति–नेति संसारो में
राम बसे हैं त्याग में, जग
ढूंढे उनको अधिकारों में 

          © दीपक शर्मा ’सार्थक’













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