हिंडनबर्ग एक प्रोपोगेंडा
मेरी नजर में शेयर मार्केट अपने आप में एक स्कैम है।ये सट्टेबाजी दलाली और जुवां का बस एक सभ्य समाज में लीगलाइजेसन (वैधिकरण) भर है। यहां पर समाज और सरकार ने मिलकर आपको दलाली और जुवां खेलने की कानूनन छूट दे रखी है।
इसका सबसे ताजा उदाहरण जबसे आईपीएल शुरू हुआ है तबसे आपने देखा होगा ! पहले सट्टेबाजी एक कानूनन अपराध था। फिर आईपीएल आने के बाद कुटिल बिजनेसमैन और साहूकारों ने सट्टेबाजी को एक लीगल जामा पहना दिया। अब आप ’ड्रीम एलेवेन’ और ऐसी ही तमाम ऑनलाइन माध्यमों से खुलेआम सट्टेबाजी कर सकते हैं। इसी तरह लॉस एंजेल्स में वैश्यावृत्ति को कानूनन मान्यता है।
यानी कहने का मतलब ये है कि साहूकार व्यापारी हर उस चीज को जिसे वो बेच सकते हैं..उसे कानून को अपने मन मुताबिक तोड़–मरोड़ के वैध बना देते हैं और खुलेआम बेचते हैं।
अब अडानी ग्रुप को लेकर उपजे ताजे विवाद पर आते हैं। 2014 से जबसे वर्तमान सरकार सत्ता में आई है तबसे ही अडानी का नाम गाहे बगाहे किसी न किसी बहाने चर्चा में आ ही जाता है। अडानी किसी बड़े बिजनेसमैन परिवार में नहीं जन्मे, उन्होंने एक बहुत ही साधारण मध्यवर्गीय परिवार में जन्म लिया और आज वो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बड़े बिजनेसमैन में एक हैं। हाजिर सी बात है इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित करने के लिए वो कोई गौतम बुद्ध के मार्ग पर तो चले नहीं होंगे वैसे भी वो गौतम अडानी है..गौतम बुद्ध नहीं। उन्होंने ना जाने कितने अनगिनत बाबुओं की जेब गर्म की होगी...ना जाने कितने नेताओ को फंड दिया होगा।ऐसी ही न जाने कितनी विपरीत परिस्थितियों का सामना करके वो आज उस स्थान पर हैं।
लेकिन इन सबके बावजूद उनकी दूरदृष्टि का मैं कायल हूं। उनकी दशकों आगे की सोच का ही नतीजा है जो आज वो इस स्थान पर हैं।
इसका ज्यादा नहीं मैं बस एक उदाहरण दूंगा। ये निर्विवाद रूप से सत्य है कि आने वाला समय नवीकरणीय ऊर्जा का है। पृथ्वी पर उपलब्ध खनिज और कोयला एक दिन समाप्त हो जाएगा। अडानी ने इसे एक अवसर की तरह लिया और पचासों हजार करोड़ का निवेश कर ’अडानी ग्रीन एनर्जी’ की स्थापना की। वर्तमान सरकार का भी इसमें बहुत सहयोग मिला क्युकी सरकार भी स्वच्छ नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने को लेकर प्रतिबद्ध थी। इसका फायदा भी अडानी को मिला।मुझे याद है जब अडानी ग्रीन एनर्जी की स्थापना हुई थी तब उसका शेयर मात्र 100 और 200 के बीच में ही रन कर रहा था। लेकिन पांच सालों में ही ये आसमान छूने लगा।और बीच में तो ये 2500 तक भी गया। इसका एक कारण निवेशकों का भविष्य में ग्रीन एनर्जी की उपयोगिता को लेकर विश्वास था। अडानी ने भी गुजरात, राजस्थान में बड़े बड़े सोलर प्लांट लगाकर निवेशकों का दिल जीत लिया। मैने भी 50 हजार लगाकर मात्र छह महीने में एक लाख रूपये कमाए।अडानी ने व्यापार के उन क्षेत्रों को ही छुआ जो भविष्योन्मुख थे। उसी की बदौलत वो इस मुकाम पर पहुंच पाए। लेकिन आज इनपर हिंडनबर्ग द्वारा कई इल्जाम लगाए गए हैं। टैक्स चोरी भाई भतीजा वाद, हेराफेरी आदि न जाने कितने इल्जामों का सामना आज उनकी कंपनी को करना पड़ रहा है। इन टैक्स चोरियों को थोड़ा बारीकी से समझते हैं–
आप अगर भारत की आर्थिक नीतियों को ध्यान से देखते होंगे तो आप को याद होगा की भारत सरकार दशकों से ही General Anti-Avoidance Rules-(GAAR) कानून बनाना चाहती थी। लेकिन कहीं इस चक्कर में विदेशी निवेश न प्रभावित हो जाए इसलिए इस कानून को लागू नहीं कर रही थी। आप में से जो लोग इस ’GAAR’ के बारे में नहीं जानते उनको साधारण भाषा में बता दूं कि ये वो कानून है जो किसी भी देश में निवेश के नाम पर हो रही टैक्स की चोरी को रोकता है। जैसे एक छोटा सा उदाहरण समझिए भारत और माॅरिसस में मुक्त व्यापार समझौता है। अब इसी का फायदा उठाकर कुछ कंपनियां टैक्स बचाने के लिए डायरेक्ट भारत में निवेश न करके माॅरिसस में एक छद्म कंपनी बनाकर वहां से निवेश करती हैं। ये सब जानते बूझते सरकारों को स्वीकार करना पड़ता है क्योंकि उनको डर रहता है की कहीं यदि ज्यादा सख्ती की तो एफडीआई (विदेशी निवेश) प्रभावित हो सकता है। और इससे देश का विकास रुक जायेगा।लेकिन इसी टैक्स चोरी को रोकने के लिए ’GAAR’ विश्व के कई देशों में लाया गया।भारत में मेरी नॉलेज में पहली बार प्रणव मुखर्जी जब वित्त मंत्री थे तब इस कानून को अमली जामा पहनाने का प्रयास किया था।
यहां पर इस विषय को उठाने का मात्र इतना प्रयोजन है की दुनियां के किसी भी कोने में क्यों न हो, हर व्यापारी कम से कम टैक्स देकर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के प्रयास में रहता है। गौतम अडानी भी उसी श्रेणी में आते हैं।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट जिसे लेकर इतना विवाद उपजा है उसका मुख्य इल्जाम ही यही है की अडानी ने टैक्स हेवेन देशों में फेक कंपनियां बनाकर टैक्स चोरी की है। उनके हिसाब से तो जैसे संसार की सारी कंपनियां बड़ी ईमानदारी से टैक्स भरती हैं।
व्यापार का मतलब ही झूठ का पुलिंदा है। कार्ल मार्क्स इसीलिए पूंजीवाद के विरोध में है। पूंजीवाद की जड़ों में झूठ फरेब मक्कारी ही पनपती हैं। संसार का कोई भी पूंजीपति इसके बिना व्यापार कर ही नहीं सकता।
और फिर हमारे गांव में एक कहावत कहते है की "बोले तो सूप बोले.. चलनी क्या बोले जिसमे बहत्तर छेद होते हैं!" अब जरा इन हिंडनबर्ग के बारे में समझ लेते हैं ये एक शॉर्ट सेलिंग कंपनी है। यानी ये एक ऐसी कंपनी है जो उस शेयर में सट्टा लगाती है जिसके भाव गिरने वाले होते है या उसके भाव गिरने की अपेक्षा होती है। अगर और साधारण साधारण शब्दों में बोलूं तो ये ऐसे दलाल हैं जो गिरने वाले शेयर की दो निवेशकों के बीच खरीद फरोख्त करके बीच की दलाली खा जाते हैं। यानी एक फ्रॉड धंधा जिसे अमेरिका में लीगल बना दिया गया है। कहने का मतलब है कि किसी कंपनी के जितने भी ज्यादा शेयर गिरे उतना ही इनका फायदा है। और स्पष्ट शब्दों में कहूं तो ये वो पैरासाइट्स हैं जो खून पीने वाले जानवरों का भी खून पी जाते हैं।
अब इसी से इनकी नीयत स्पष्ट हो जाती है। ये पूंजीपतियों की बारीक से बारीक गलती की छानबीन करके पब्लिक डोमेन में लाते हैं। जिससे इस कम्पनी के शेयर गिरें और इनका फायदा हो।
मैं नहीं कहता की अडानी बहुत ईमानदार व्यापारी हैं या उन्होंने पूरे लीगल तरीके से अपनी संपत्ति अर्जित की है।मुझे तो पूंजीवाद से ही शिकायत है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं की "हिंडनबर्ग" जैसे खून चूसने वाले कीड़े हमारे देश के निवेशकों का पैसा चूस जाएं। और वैसे भी इधर लगातार भारतीय हस्तियों पर विदेशियों द्वारा किए जा रहे व्यक्तिगत हमले शक भी फैदा कर करते हैं की आखिर उनकी मंशा क्या है। इसलिए इस प्रोपोजेंडा को समझिए फिर निर्णय लीजिए।
©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’
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