बसंत बाण

गुनगुनी सी धूप है
हवा का रुख़ बदल गया
नए कपोल खिल रहे
भ्रमर का दिल मचल गया !

ठिठुर रही थी ठंड और
बसंत बाण चल गया
प्रेम का हुआ उदय
तुषार सब पिघल गया !

हंसवाहिनी के मुख से
स्वर नया निकल गया
चहक उठी कली–कली
चमन लगे की धुल गया !

वसुंधरा महक उठी
बसंती रंग घुल गया
 प्रेम को समेटने
हृदय का द्वार खुल गया !

               ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

*बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं*

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