मास्टर साहब

आज सुबह–सुबह ही एक मित्र ने जोक भेजा जो कुछ इस तरह था की "आई लव यू से भी ज्यादा कौन सी चीज है जो सुनने में अच्छी लगती है। और उसका उत्तर है पैसा निकालते समय एटीएम से निकलने वाली ’खर्रर’ वाली आवाज।
खैर ये तो एक जोक था पर असल में अब तो एटीएम से ये साउंड सुनने को ज्यादा नसीब ही नहीं होता। एक क्लिक के साउंड के साथ अकाउंट में सेलरी क्रेडिट होने का मैसेज आता है। और फिर भीम पे,गूगल पे, फोन पे जैसे राक्षस अकाउंट की आत्मा को धीरे धीरे करके खा जाते हैं। 
लेकिन आजकल तो ऐसे परजीवी भी पैदा हो गए हैं जो सेलरी के अकाउंट में गिरने से पहले हो खा जाते हैं।अभी महीने की शुरुवात में सेलरी अकाउंट में आई। इसी के साथ ही मैंने नोटिस किया की हर बार को अपेक्षा इस बार एक हजार रूपये खाते में कम आए हैं। मुझे टेंशन हुई, इसके कारण फटाफट अपने कई साथी अध्यापकों को कॉल करके उनसे पूछा की क्या उनके साथ भी ऐसा हुआ है? जब सबने बताया कि हां उनकी भी सेलरी में एक हजार रूपिए की सेंध लग गई है तब जाकर कहीं मेरे कलेजे में ठंडक पहुंची। वो कहते हैं न अगर केवल अपने ही घर में चोरी जो जाए तो ज्यादा दुख होता है और अगर पूरे गांव में डकैती पड़ जाए तो अपना दुख कम हो जाता है। वैसे भी हम भारतीय व्यक्तिगत समस्या को ही समस्या समझते हैं, अगर कोई कॉमन समस्या है तो उसे हम समस्या मानते ही नहीं।
मैं ये सब सोच ही रहा था तभी व्हाट्सएप से जुड़े शिक्षक समूहों के विभिन्न अवैतनिक अर्थशास्त्रियों( अवैतनिक इसलिए क्योंकि अपने इस ज्ञान के लिए सरकार की तरफ से इनको कोई वेतन नहीं मिलता) ने सूचना देना शुरू किया की वेतन में की गई ये कटौती अग्रिम टैक्स है। जो पहले एक हजार कटता था अब उसकी जगह दो हजार कटने लगा है। 
मैं इन अवैतनिक अर्थशास्त्रियों द्वारा कटैती पर की गई पूरी व्याख्या पढ़ ही रहा था की तभी कॉल आ गई।
मैने हैलो बोला 
उधर से आवाज आई, " गुड मॉर्निंग सर! मैं फलानी, एचडीएफसी बैंक के बिहॉफ पर बोल रही हूं। क्या आपको पर्सनल लोन की आवश्यकता हैं?“
चूंकि ऐसी औसतन सात आठ कॉल रोज मेरे नंबर पर आती हैं। पता नहीं इन बैंक वालों ने मेरी कौन सी अंबानी वाली इमेज बना रखी है, जो रोजाना इतना कॉल करते हैं।  मुझे ये सोच के गुस्सा आई। ऊपर से अभी–अभी मुझे अग्रिम कटौती के नाम पर लूट लिया गया था अतः मैंने इसी झुंझलाहट में कॉल काट दी। उसके बाद पुनः अग्रिम कटौती वाली पूरी खबर पढ़ने के लिए व्हाट्सएप खोला, लेकिन तब तक अध्यापकों वाले ग्रुप पर दसियों विभागीय आदेश एवम उससे जुड़ी व्याख्या वाले मैसेज आ गए थे। और इसी के साथ विभाग के कुछ अवैतनिक सलाहकारों द्वारा इनकी भी व्याख्या की जा रही थी। अवैतनिक सलाहकार इसलिए क्योंकि बिचारे इन सलाहकारों को भी सरकार की तरफ से इन थोक के भाव में आने वाले आदेशों की व्याख्या करने के लिए कोई अलग से पैसा नहीं दिया जाता। लेकिन फिर भी ये अवैतनिक सलाहकार निष्काम भाव से बिना फल की प्राप्ति के लालच के हर सरकारी आदेशों को विभिन्न ग्रुपों में फारवर्ड करके इनकी व्याख्या भी करते रहते हैं। हद तो तब हो जाती है जब एक ही ग्रुप में एक ही मैसेज चार पांच सलाहकारों द्वारा भेज दिया जाता है।
खैर मैंने पुनः अग्रिम कटौती वाली व्याख्या ढूंढ निकाली और उसे पढ़ने लगा। उफ्फ..हाय ... मैं कितना स्वार्थी हूं जो इतने सारे परस्वार्थी आदेशों के बीच अपने वेतन कटौती जैसी तुच्छ चीज को समझने के पीछे भाग रहा हूं( ऐसा एक भाव मेरे दिमाग में आया लेकिन मैंने गरदन को झिटका देकर इस भाव को बाहर फेंक दिया)
मेरी समझ में नहीं आता की अग्रिम टैक्स की क्या आवश्यकता क्या है। जब साल भर की इनकम पर टैक्स लिया जाता है। तो साल भर की इनकम होने तक इंतजार तो करो, इतनी क्या जल्दी है। वैसे भी सारा संसार तो वैसे भी टैक्स मय है। साबुन खरीदो उसपे टैक्स, चाय खरीदो उसपे टैक्स, सड़क पर चलो उस पर टैक्स,बस पर बैठो उसपर टैक्स..कहने का मतलब है आखें खुलने से लेकर आखें बंद होने तक सब कुछ टैक्स टैक्स टैक्स ही है फिर भगवान जाने इस अग्रिम टैक्स की क्या आवश्यकता है! इसी तरह रहा तो कहीं कुछ दिन बाद ऐसा न हो जाए की कोई अमीर होने का सपना देखे और उससे भी अमीर होने का अग्रिम टैक्स उसूल लिया जाए।
मैं अपने इन खयालों में खोया ही था की तब तक फिर मोबाइल बजा। और रिसीव करते ही–
“गुड आफ्टरनून सर ! मैं एक्सिक्स बैंक के बिहाफ पर फलानी बोल रही हूं! आपको हमारे बैंक की तरफ से चार्जलेस क्रेडिट कार्ड ऑफर हुआ है।“
अच्छा, एक बात गौर किया है ! ऐसी ज्यादातर कॉल पर फलानी ही बात करती हैं फलाने बहुत कम होते हैं। शायद इसका भी कोई मनोविज्ञान हो, की लड़कियों द्वारा कॉल किए जाने पर पुरुष लोन लेने के लिए लुब्लुबा जाता होगा! या शायद दिन भर ऐसी कॉल से परेशान करने के बावजूद आप लड़कियों को डांट नहीं पाते होंगे!
या शायद देश में इतनी बेरोजगारी है की ये बिचारी लड़किया पांच–पांच रूपये के लिए दिन भर कॉल सेंटर पर बैठ कर ये सब करने को मजबूर हैं..लेकिन जो भी हो ये इतना इरिटेटिंग है की लोग गुस्से में कुछ भी बोल जाते हैं।
खैर अग्रिम कटौती की चोट से मैं थोड़ा दार्शनिक हो गया था, इसलिए ये सब सोचने लगा था। मैने पुनः कॉल न करने को बोलकर उन देवी जी की कॉल कट कर दी।
इतनी देर में हमारे दिव्य विभाग के कुछ आदेश और आ गए थे, ये तो शुक्र है की ये आदेश ऑनलाइन आते है अगर प्रिंट होकर आते तो प्रिंटर की इंक धरती से खत्म हो गई होती..या इन आदेशों को लाने वाला डाकिया आत्महत्या कर लेता। इसी गति से यदि आदेश आते रहे तो पत्रांक संख्या के लिए अंक समाप्त हो जायेंगे। जो भी हो इन आदेशों की भीड़ में मेरे प्रमोशन की सूची कहीं खो गई( उफ्फ.. हाय मैं कितना स्वार्थी हूं, मैं शिक्षक होकर आठ साल से प्रमोशन की राह देख रहा हूं! मुझे तो निःस्वार्थ भाव से केवल पढ़ाना चाहिए।)
इसी तरह पूरा दिन बीत गया। अग्रिम कटौती का दुख भी कम हो गया। फिर खयाल आया उफ्फ मैं कितना लालची हूं, मात्र दो हजार रूपल्ली की कटौती से ही दुखी हो गया, राष्ट्र सेवा का भाव मुझमें है भी या नहीं..आखिर टैक्स सरकार राष्ट्र हित में ही तो ले रही है, उसके लिए रुदन क्यों!
तभी मोबाइल बजा, अननोन नंबर है। और शायद मुझे पता है कॉल उठाते ही उधर से क्या बोला जाएगा...
गुड मॉर्निंग मैं फलानी....फलाने बैंक के बिहॉफ पर बोल रही हूं...आपको पर्सनल लोन चाहिए....क्रेडिट कार्ड चाहिए ...! 
“दिल चीज क्या है आप मेरी ’जान’ लीजिए
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए"
आदि आदि !

                               ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

                     

Comments

  1. काम करना, वेतन लेना, टैक्स जमा करना,घर संभालना..... भारतीय जनता युवा के लिए कितना परेशान कर रहा है !

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