हम भाारतीयों का सोचने में कोई मुकाबला नहीं कर सकता है।हमारी कल्पनाशीलता का कोई कितना भी मज़ाक क्यों न उड़ाए पर ये सबको मानना ही पड़ेगा कि हम भारतीय दुनियां में सबसे ज्यादा कल्पनाशील हैं। सोचने वाली बात ये है कि हम कितना सोचते हैंं?हमारी कल्पनाशक्ति कितनी है? क्योंकि ये कल्पनाशीलता ही है जो विज्ञान का आधार है। विज्ञान का कोई भी सिद्धांत अपने आप नहीं बन जाता है। किसी भी सिद्धांत के बनने से पहले एक हाइपोथिसिस(परिकल्पना) होती है।जिसके आधार पर आगे चलकर उस सिद्धांत का निर्माण होता है। जब कोई कल्पना ही नहीं करेगा तो कोई अविष्कार कैसे करेगा? भारत के धार्मिकग्रन्थ, पुराण,उपनिषद सब कल्पना से भरे पड़े हैं। और अगर कोई मेरी माने तो यही कल्पनाशीलता ही हमारी सबसे बड़ी विशेषता और पूंजी है।कुछ उदाहरणों के साथ बात को समझते हैं- दुनियां में सबसे पहले शल्य चिकित्सा की परिकल्पना भारतीय ग्रन्थों में मिलती है। जहां शिव ने बालक गणेश की शल्य चिकित्सा करके हाथी का सिर लगा दिया।ये अपने आप में एक अनोखी परिकल्पना थी। और फिर आज से दो हजार वर्ष पहले 'सुश्श्रुत' नामक भारतीय विद्वान ने प्रमाणित तौर पर पहली...