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Showing posts from 2018

फिर साल बीतने वाला है !

फिर साल बीतने वाला है एक दिन हम भी बीते कल का हिस्सा बन कर रह जाएंगे बीते हुए समय का एक किस्सा बनकर रह जाएंगे जी लो इस पल को जी भर के फिर साल बीतने वाला है ! ये बीतने वाला हर लम्हा ...

वो ज़िन्दा हैं क्या !

ये नुमाइश जो जीने की करते हैं वो कोई पूछे भी उनसे वो ज़िन्दा है क्या ! है धुरी से अलग न ज़मीं न फलक देखो जिस ओर भी बेखुदी की झलक ज़िन्दगी जब तलक करते रहते हैं क्या ! कोई पूछे भी उन...

दृष्टिकोण

क्यों करते हो मजबूर मुझे अपने पदचिन्ह पे चलने को! क्यों करते हो मजबूर मुझे अपने विचार में पलने को ! जिस दृष्टि से तुमने दुनियां को देखा समझा और जाना है जिस दृष्टि से तुमने बु...

अब इस घरौंदे को बदल दे !

अब इस घरौंदे को बदल दे संबन्ध की दीवार में सीलन बहुत ही आ गई रिश्तो की छत भी रिस रही बूंदे ज़मी पर आ रही जर्जर बहुत ही हो गई मौका है बच के तू निकल ले अब इस घरौंदे को बदल दे ! विश्वा...

मेरे शहर में !

मेरे शहर में ! ज़मीन तो महेंगी हैं ज़मीर पर सस्ता है ग़रीब ही बेबस है अमीर तो हंसता है मेरे शहर में ! उससे ही ख़तरा है करीब जो बसता है चोरो की चांदी है शरीफ ही फंसता है मेरे शहर म...
कभी गौर किया है ! कुछ चहरे चीख चीख के बयां करते हैॆ अंदर का खालीपन कभी ध्यान दिया है ! कुछ आंखों में साफ झलकता है अंदर का वीरानापन कभी महसूस किया है ! कुछ लोगो की हंसी ज़ाहिर कर द...

पूर्णिमा

अंधेरे में प्रकाश पुंज की तरह है पूर्णिमा मिटा दे नफ़रतो को प्रेम की धरा है पूर्णिमा जडत्व को हटाके 'चेतना' का जो करे उदय सरल हृदय मृदुल वचन सी निर्झरा है पूर्णिमा तिमिर में ...
ख़ुदी में डूबा सा बेजान है शहर पूरा कोई सुकून न उम्मीद हम रहें कैसे उमर ग़ुजर गई पूरी यूंही ख़यालो में जो बात दिल में है लब्ज़ो में हम कहें कैसे है वो नदी मेरा वजूद है तिनके ज...

कुछ लोग !

कुछ लोग कभी सोचते नहीं केवल बोलते हैं ! कुछ लोग कुछ करते नहीं केवल टोकते हैं ! कुछ लोग आगे बढ़ते नहीं केवल रोकते हैं ! कुछ लोग हौसला बढ़ाते नहीं केवल कोसते है ! कुछ लोग किसी की सु...

स्टेटफार्वर्ड कहीं के !

भक ! स्टेटफार्वर्ड कहीं के ! दिल रखना भी नहीं आता हट ! प्रेक्टिकल कहीं के ! जज़्बातो में बहना नहीं आता धत ! डीसेन्ट कहीं के ! मनमर्जी से जीना नहीं आता भक ! सीरियस कहीं के ! कभी खुल के ...
संवेदनाए साम्यवादी हो गई है शायद ! न मिलने की ख़ुशी न बिछड़ने का ग़म न टूटने की इच्छा न जुड़ने का भ्रम न गिरने की सीमा न उठने का दम न होठो पे मुस्कुराहट न आंखे ही नम सोच भी नाज़...
अगर तू साथ है मेरे तो फिर किस बात की मुश्किल अगर जज़्बात हैं गहरे तो किस हालात की मुश्किल मोहोब्बत का दिया दिल में अगर जलता रहे हरदम तो फिर बस नाम की काली अंधेरी रात की मुश्क...
संवेदनाओ का साम्यवाद

कुछ सीखो दुनियां से !

शर्म नहीं आती दिल की बात सरेआम कहते हो ! कोई सुनेगा तो क्या कहेगा समझेगा शायद नशे में रहते हो ! शर्म नहीं आती जैसे हो एकदम वैसे ही दिखते हो ! कुछ सीखो दुनियां से कि तहजीब से कैसे ...

संयोग ही संयोग

किसी भी चीज़ की हद होती है यार ! चौबीस घण्टे बस संयोग..संयोग..संयोग ! अरे कभी वियोग भी होने दो ! कवियों लेखको का मानना है कि ये  प्रेम नाम की कीड़ा दो ही परिस्थितियों में किसी व्यक...

डर

ये नाजुक सूखे ख़ुश्क संबंधो का छूते ही बिखर जाने का डर ! ये गीली मिट्टी में रोपे सतही जज़्बातो का जड़ से उखड़ जाने का डर ! ये तल्ख ज़हर बुझे तीखे अल्फ़ाज़ो का सीने में गड़ जाने ...
क्या हो गया है शब्दो को ? एकदम खोखले..संवेदनहीन बूढ़े..जर्जर जैसे दिवालिया हो गए हैं ! क्या हो गया है शब्दो को ? न जज़्बात न वेदना न उत्साह न अपनापन जैसे मर से गए हैं ! क्या हो गया है...

बड़ी ख़बर

पतंजलि राइस सबसे नाइस, देश के हर कोने से सर्वश्रेष्ठ चावलो का कलेक्सन प्रस्तुत करते हैं "बड़ी ख़बर !" पावर्ड बाई..प्लास्टो टैंक.." प्लास्टो है तो गारन्टी है !" "दिव्या बोले तो परफ...

जाने क्यों, बदले-बदले से लगते हो !

जाने क्यों,बदले-बदले से लगते हो ! न वो मोहोब्बत है न ही वो चाहत है न वो सुकूं है न ही वो राहत है न कोई शिकवा है न ही शिकायत है न वो कशिश है न वो शरारत है जाने क्यों, बदले बदले से लगते ह...
बहुत सलीके से करते हैं एकदम व्यवस्थित..आर्गनाइज़्ड ! कहीं कोई जान न जाए भीतर के अहसास कहीं जाहिर न हो जाए दिल की ख्वाहिशे बहुत सख़्त रखते हैं चहेरा एकदम सपाट..हार्ड ! कहीं दिख ...
दो-चार झूठ चार-पांच धोखे सात-आठ ज़ख्म और बन गया वजूद मेरा ! ढेले भर अकल दो टके समझ रत्ती भर सबर और बस गया शहर मेरा ! थोड़ी सी बेचैनी हल्की सी चुभन ज़रा सी तड़प और कट गया सफर मेरा !

दुनियांदारी

दुनियां, क्या हो गया है तुमको ! ख़ुद में ही बस मगन.. ख़ुद की ही बस लगन.. ख़ुद के लिए जतन.. ख़ुद किया पतन.. दुनियां, क्या मिल गया है तुमको ! अपनी ही बस फ़िकर.. अपनो से बेख़बर.. अपना ही बस सफर.. ...

एक वार्तालाप

सरकार- "यार ये पेंशनविहीन कर्मचारी अपनी पेंशनबहाली का मुद्दा लेकर बहुतै कुलबुला करे हैं।" चुनाव विश्लेषक- "अरे काहे परेशान होते हैं नेताजी ! ई लोग कुच्छौ नहीं कर पाएंगे।" सर...

ऐसा देश है मेरा भाग -२

हम भाारतीयों का सोचने में कोई मुकाबला नहीं कर सकता है।हमारी कल्पनाशीलता का कोई कितना भी मज़ाक क्यों न उड़ाए पर ये सबको मानना ही पड़ेगा कि हम भारतीय दुनियां में सबसे ज्यादा कल्पनाशील हैं। सोचने वाली बात ये है कि हम कितना सोचते हैंं?हमारी कल्पनाशक्ति कितनी है? क्योंकि ये कल्पनाशीलता ही है जो विज्ञान का आधार है। विज्ञान का कोई भी सिद्धांत अपने आप नहीं बन जाता है। किसी भी सिद्धांत के बनने से पहले एक हाइपोथिसिस(परिकल्पना) होती है।जिसके आधार पर आगे चलकर उस सिद्धांत का निर्माण होता है। जब कोई कल्पना ही नहीं करेगा तो कोई अविष्कार कैसे करेगा? भारत के धार्मिकग्रन्थ, पुराण,उपनिषद सब कल्पना से भरे पड़े हैं। और अगर कोई मेरी माने तो यही कल्पनाशीलता ही हमारी सबसे बड़ी विशेषता और पूंजी है।कुछ उदाहरणों के साथ बात को समझते हैं- दुनियां में सबसे पहले शल्य चिकित्सा की परिकल्पना भारतीय ग्रन्थों में मिलती है। जहां शिव ने बालक गणेश की शल्य चिकित्सा करके हाथी का सिर लगा दिया।ये अपने आप में एक अनोखी परिकल्पना थी। और फिर आज से दो हजार वर्ष पहले 'सुश्श्रुत' नामक भारतीय विद्वान ने  प्रमाणित तौर पर पहली...

ऐसा देश है मेरा !

कोई माने या न माने..मैं एकदम अपने देश पर गया हूँ। जैसा स्वभाव मेरे देश का है वैसा ही स्वभाव मेरा है।मुझमें और मेरे देश में जो सबसे बड़ी समानता है वो ये है कि हम दोनो हमेशा ग़लत ट...