डर

ये नाजुक सूखे
ख़ुश्क संबंधो का
छूते ही बिखर जाने का डर !

ये गीली मिट्टी में रोपे
सतही जज़्बातो का
जड़ से उखड़ जाने का डर !

ये तल्ख ज़हर बुझे
तीखे अल्फ़ाज़ो का
सीने में गड़ जाने का डर !

ये बेड़ियों में जकड़ी
पाबन्द ज़न्दगी में
ख्वाबों के सड़ जाने का डर !

यूं ही डर के आगोश में
लिपटे इंसान का
तड़प के मर जाने का डर !

ये बेबस मजबूर
सहमी ज़िन्दगी का
यूं ही गुज़र जाने का डर !

            © दीपक शर्मा 'सार्थक'

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