संयोग ही संयोग

किसी भी चीज़ की हद होती है यार !
चौबीस घण्टे बस संयोग..संयोग..संयोग !
अरे कभी वियोग भी होने दो !
कवियों लेखको का मानना है कि ये  प्रेम नाम की कीड़ा दो ही परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को काटता है।पहली परिस्थिति को 'संयोग' जबकि दूसरी परिस्थित को 'वियोग' कहते हैं। संयोग वाली परिस्थित तब उत्पन्न होती है जब नायक नाइका मिलते हैं और एक दूसरे से चिपडिम-चुपड़ा..लुसड़िम-लुसड़ा करते हैं। जबकि वियोग रूपी प्रेम तब उत्पन्न होता है जब नायक नाइका एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं। ऐसी स्थित में बिचारा नायक वियोग में दारू पीकर नगर निगम की महरबानी से खुली रह गई नालियों में लोटने लगता है।और इस तरह अपनी प्रियसी को याद करता है।जबकि नाइका शाहरुख ख़ान की टेंसूदार फिल्में देखकर और अपने प्रेमी को याद करके आंसू बहाती है। इसके साथ डायटिंग भी करने लगती है।
पर अब वो समय नहीं रहा।जैसे जैसे दुनियां डिजिटल हो रही है  वैसे वैसे वियोग की जगह खत्म होती जा रही है।
नायक और नाइका अब एक दूसरे के चौबीस घण्टे घुसे रहते हैं। फेसबुक ह्वाट्सएव मैसेंजर इंस्टाग्राम जैसे इतने साधन पनप गए हैं कि वियोग का सवाल ही नहीं पैदा होता है।
अब नायक नाइका हर वक्त एक दूसरे से जुड़े रहते हैं।यहां तक दैनिक नित्यक्रिया के समय भी दोनो एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं।अब प्रेम के डिजिटल संसकरण में वियोग का कोई स्थान नहीं रह गया है।लेकिन अगर कोई मेरी माने तो वियोग के न होने के कारण अब संयोग में भी वो मज़ा नहीं रहा।अब संयोग में न वो पहले जैसी क़शिश रही न उमंग रही। इस बात को ऐसे समझते हैं जैसे किसी व्यक्ति को हर समय बस मीठा ही खाने को मिले तथा खट्टी और तीखी चीजे उसे कभी न दी जाएं। ऐसी स्थित में वो व्यक्ति एक समय के बाद मिठाई के प्रति उदासीन हो जाएगा। यहां तक उसके मीठे से नफरत भी हो सकती है।
ठीक उसी तरह अगर हमेशा संयोग-संयोग ही होता रहेगा और वियोग खत्म हो गया तो संयोग से भी लोगो का मन ऊब जाएगा।
शायद इसी लिए बार-बार मात्र संयोग होते रहने से प्रेम का स्वरूप चरेठा हो गया है। उसकी संरचना ही गड़बड़ हो गई है।इसका कुप्रभाव आज कल के प्रेमी प्रमिकाओ पर स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।एक तरफ संयोग हुआ और फिर शारीरिक आवश्यकता के पूरे होते ही जैसे ही टेस्टोस्टेराॅन हार्मोन्स शान्त हुए,बस दोनो प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे से ऊबने लगते हैं। मिनट भर में ब्रेकप और पैचप होने लगा है।अब किसी का दिल टूटा नहीं कि कोई दूसरा लफ्फेदार बातो से बना फैवीकोल लेकर दिल जोड़ने को तैयार बैठा है। अब न ही दिल टूटने का कोई ग़म रह गया है और न ही दिल मिलने की कोई विशेष ख़ुशी ही रह गई है।
कहते हैं कि दुनियां के डिजटिल हो जाने से लोग एक दूसरे के और नज़दीक आते जा रहे हैं। लेकिन सही माइने में देखा जाए तो लोग एक दूसरे के नज़दीक होकर भी दूर होते जा रहे हैं। कहावत ही कही गई है कि ज्यादा मिठाई में कीड़े पड़ जाते हैं।

                   © दीपक शर्मा 'सार्थक'

                     

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