पूर्णिमा

अंधेरे में प्रकाश पुंज की तरह है पूर्णिमा
मिटा दे नफ़रतो को प्रेम की धरा है पूर्णिमा
जडत्व को हटाके 'चेतना' का जो करे उदय
सरल हृदय मृदुल वचन सी निर्झरा है पूर्णिमा

तिमिर में पूर्ण चंद्र की तरह खिली है पूर्णिमा
मधुर धुनो के गीत में सदा पली है पूर्णिमा
है 'वंदना' यही जहां रहे सदा वो ख़ुश रहे
मिले वो लक्ष जिस तरफ बढी चली है पूर्णिमा

       - दीपक शर्मा 'सार्थक'

   

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