अब इस घरौंदे को बदल दे !
अब इस घरौंदे को बदल दे
संबन्ध की दीवार में
सीलन बहुत ही आ गई
रिश्तो की छत भी रिस रही
बूंदे ज़मी पर आ रही
जर्जर बहुत ही हो गई
मौका है बच के तू निकल ले
अब इस घरौंदे को बदल दे !
विश्वास की बुनियाद भी
अब भरभराकर ढह गई
उम्मीद के दरवाज़ो को
दीमक है कबका खा गई
जो रह गया वो भूल जा
जो पास है वो लेके चल दे
अब इस घरौंदे को बदल दे !
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
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