बहुत सलीके से करते हैं
एकदम व्यवस्थित..आर्गनाइज़्ड !
कहीं कोई जान न जाए
भीतर के अहसास
कहीं जाहिर न हो जाए
दिल की ख्वाहिशे
बहुत सख़्त रखते हैं चहेरा
एकदम सपाट..हार्ड !
कहीं दिख न जाए
अंदर की छटपटाहट
कोई देख न ले
भीतर की बेचैनी
बहुत संभल के रहते हैं
एकदम बैलेन्स..नाॅर्मल !
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
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