ऐसा देश है मेरा भाग -२
हम भाारतीयों का सोचने में कोई मुकाबला नहीं कर सकता है।हमारी कल्पनाशीलता का कोई कितना भी मज़ाक क्यों न उड़ाए पर ये सबको मानना ही पड़ेगा कि हम भारतीय दुनियां में सबसे ज्यादा कल्पनाशील हैं। सोचने वाली बात ये है कि हम कितना सोचते हैंं?हमारी कल्पनाशक्ति कितनी है? क्योंकि ये कल्पनाशीलता ही है जो विज्ञान का आधार है। विज्ञान का कोई भी सिद्धांत अपने आप नहीं बन जाता है। किसी भी सिद्धांत के बनने से पहले एक हाइपोथिसिस(परिकल्पना) होती है।जिसके आधार पर आगे चलकर उस सिद्धांत का निर्माण होता है। जब कोई कल्पना ही नहीं करेगा तो कोई अविष्कार कैसे करेगा?
भारत के धार्मिकग्रन्थ, पुराण,उपनिषद सब कल्पना से भरे पड़े हैं। और अगर कोई मेरी माने तो यही कल्पनाशीलता ही हमारी सबसे बड़ी विशेषता और पूंजी है।कुछ उदाहरणों के साथ बात को समझते हैं-
दुनियां में सबसे पहले शल्य चिकित्सा की परिकल्पना भारतीय ग्रन्थों में मिलती है। जहां शिव ने बालक गणेश की शल्य चिकित्सा करके हाथी का सिर लगा दिया।ये अपने आप में एक अनोखी परिकल्पना थी। और फिर आज से दो हजार वर्ष पहले 'सुश्श्रुत' नामक भारतीय विद्वान ने प्रमाणित तौर पर पहली शल्य चिकित्सा करके एक व्यक्ति की कटी नाक जोड़ दी। अब आज की दुनियां में शल्य चिकित्सा के नए-नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं।माइकल जैक्सेन ने शल्य चिकित्सा कराके अपनी काली चमड़ी बदला कर श्वेत करा ली। कहीं शल्य चिकित्सा के बहौलत कोई स्त्री, पुरुष बन जा रही है। ऐसा तभी संभव हो सका है जब आज के विज्ञान के पास शल्य चिकित्सा की एक परिकल्पना भारतीय ग्रंथों में मौजूद थी।
ऐसे ही एक अन्य उदाहरण का ज़िक्र यहां करना चाहता हूँ। बहुत कम लोग जानते हैं कि सीता के पिता का नाम 'जनक' नहीं था बल्कि 'सीरिध्वज' था। 'जनक' तो एक उपाधि है। जो कि उनको अपने पूर्वज से मिली थी।
जनक के पूर्वज 'निमि' नाम के एक राजा थे। निमि का कोई वंशज नहीं था और उनकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद ऋषियों ने उनके पेट को मथ कर पुत्र पैदा किया।इसीलिए इनके वंश में 'जनक' नाम की उपाधि चल पड़ी। 'जनक' मतलब 'जनने' या पैदा करने वाला होता है। उन्हें 'विदेह' भी कहा गया क्योंकि वे 'निमि' के बेजान शरीर से पैदा हुए थे। उन्हें 'मिथिल' और उनके राज्य को 'मिथला' कहा गया क्योंकि उनको मथ कर पुत्र की प्राप्ति हुई थी।
ये सारी भारतीय 'मैथेलोजी' अकल्पनीय ही जान पड़ती थी लेकिन अमेरिका के ट्रांसजेन्डर पुरुष 'थामस बिटाय' ने गर्भ धारण करके तीन बच्चो को जन्म देकर सारी कल्पनाओ को यथार्थ बना दिया। यहां देखने वाली बात ये है कि भारतीय ग्रंथों में इसकी परिकल्पना हजारो साल पहले ही कर ली थी।
विदेशो की कई हाॅलीवुड फिक्सन मूवी 'टाइम ट्रवेल' पर बनी हैं। जिसमें नायक वर्तमान समय काल से पिछले समय या भविष्य में चला जाता है। और वो दिन भी दूर नहीं होगा जिस दिन वैज्ञानिक सच में ही 'टाइम ट्रेवल' की खोज कर लेंगे। लेकिन अचरज की बात ये है कि सबसे पहले भारतीय ग्रंथों में ही समय को रोकने या फिर समय काल में आगे पीछे जाने की परिकल्पना की गई है।
कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश देते समय कृष्ण ने समय चक्र को रोक दिया था। वसिष्ठ के कहने पर ब्रह्मा ने एक युग को ही बदल दिया और इस तरह द्वापर से पहले ही त्रेतायुग आ गया था। ऐसे ही हज़ारों उदाहरणो से हमारे ग्रंथ भरे पड़े हैं।
अगर इनको मात्र कोरी कल्पना ही समझ लिया जाए तो भी ऐसी कल्पना करने में हम भारतीय ही सक्षम हैं। इन कल्पनाओ ने मानवता को बहुत कुछ दिया है। क्योंकि इन्ही कल्पनाओ से परिकल्पना(हाइपोथिसिस) बनती हैं और इन्ही परिकल्पनाओं से वैज्ञानिक अाविष्कार होते हैं।
लेकिन दुख की बात ये है कि अब भारतीय समाज से कल्पनाशीलता का ह्रास होता जा रहा है। भारतीय समाज जो कि अपने खुलेपन और मैलिक चिंतन के लिए जाना जाता था अब उसका स्थान कट्टरपंथी समाज ने ले लिया है। हमारी बौद्धिक संपदा को चोरी करके विदेशी हज़ारो अाविष्कार कर रहे हैं और एक हम हैं जो इसे गंवाते जा रहे हैं।हमारी आने वाली पीढ़ी की जिज्ञासा बेदर्दी से कुचल दी जा रही है। हमारी तार्किकता को जंग लगता जा रहा है। सबसे बड़ा अंधविश्वास तो ये ही है कि हम विदेशी चश्मा पहन कर अपनी मौलिक दृष्टि को नष्ट करते जा रहे हैं।
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
Comments
Post a Comment