एक वार्तालाप
सरकार- "यार ये पेंशनविहीन कर्मचारी अपनी पेंशनबहाली का मुद्दा लेकर बहुतै कुलबुला करे हैं।"
चुनाव विश्लेषक- "अरे काहे परेशान होते हैं नेताजी ! ई लोग कुच्छौ नहीं कर पाएंगे।"
सरकार- " परेशानी वाली ही बात है।कहीं हमारी कुर्सी न ख़तरे में पड़ जाए!
चुनाव विश्लेषक- "आप बिना मतलब अपना ब्लेडप्रेशर बढ़ा रहे हैं। ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। ई पेंशनविहीन कर्मचारी एकदम लुल्ल हैं।अभी इनकी गाड़ी चाहे जिस गेर में क्यों न हो! पर चुनाव के टाइम ये पेंशनविहीन कर्मचारी नहीं रह जाएंगे।
सरकार- " अच्छा ! तो फिर चुनाव के समय ये पेंशनविहीन कर्मचारी की जगह क्या हो जाएंगे?
चुनाव विश्वेषक- "आप भी नेता जी, इतना नहीं जानते हैं! चुनाव के टाइम ये पेंशनविहीन कर्मचारी गेर बदल कर अपने पुराने खांचे में फिट हो जाएंगे। कोई 'ओबीसी' हो जाएगा, कोई 'एस.सी' हो जाएगा। कोई ब्राह्मण हो जाएगा तो कोई दलित हो जाएगा। कोई हिंदू हो जाएगा तो कोई मुस्लिम हो जाएगा। ऐसे ही हज़ारो टुकड़ो में ये टूट जाएंगे। आप एकदम बेफिक्र रहिए।ये आपका कोई नुक्सान नहीं कर पाएंगे।
सरकार, "ही ही ही ही ( खीसे निपोरते हुए) सही कहा! ये तो मैं भूल ही गया था।
चुनाव विश्लेषक- "तो फिर आप विधायको और सांसदो की सेलरी और भत्ता बढाने पर ध्यान दें। अपना भला सोचें। ये कर्मचारी तो पिसने के लिए पैदा ही हुए हैं, इनके बारे में क्या सोचना !
© सार्थक
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