वो ज़िन्दा हैं क्या !

ये नुमाइश जो जीने की
करते हैं वो
कोई पूछे भी उनसे
वो ज़िन्दा है क्या !

है धुरी से अलग
न ज़मीं न फलक
देखो जिस ओर भी
बेखुदी की झलक
ज़िन्दगी जब तलक
करते रहते हैं क्या !
कोई पूछे भी उनसे
वो ज़िन्दा हैं क्या !

अपने ही राज़ के
ख़ुद ही भेदी हैं जो
अपनी ही जेल के
ख़ुद ही कैदी हैं जो
उनको आज़ाद उड़ना
पता भी है क्या !
कोई पूछे भी उनसे
वो ज़िन्दा हैं क्या !

जितनी सरहद हैं
उतने नियम कायदे
किसमें नुकसान है
किसमें हैं फायदे
ऐसे संगदिल जहां में
बचा भी है क्या !
कोई पूछे भी उनसे
वो ज़िन्दा हैं क्या !

    © दीपक शर्मा 'सार्थक'

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