बेच दे!

ख्वाबों का ये खजाना क्यों ढ़ो रहा है तू
क़ीमत सही मिले तो ये सामान बेच दे !

इंसानियत,इंसान की अब बात छोड़िए
मौका अगर मिले तो वो भगवान बेच दे !

नाहक ही मुफलिसी में जिए जा रहे हो क्यूँ 
जाकर  खुले बाज़ार में ईमान बेच दे !

सारे सफेद पोशो की हूं नस्ल से वाकिफ़ 
जो बस चले इनका तो हिंदुस्तान बेच दें!

                  ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

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