सितम के आगे तो
गर्दन झुकाए रहते हो
कमी ये ख़ुद की है
ग़ैरों पे थोपते क्यों हो...

बहुत लज़ीज़ है रोटी
भले हो रूखी ही
ज़ुबां पे स्वाद है
खाने में ढ़ूढ़ते क्यों हो...

ये नासमझ से मशवरे
बताते फिरते हो
जो बात समझो नहीं
उसपे बोलते क्यों हो...

ज़ुबानी जंग में घायल
किया है कितनो को
यूं बेसबब ही हर किसी को
कोसते क्यों हो..

दवा के बदले, जख्मों पे
नमक छिड़क देंगे
यूं हर किसी के आगे
दिल को खोलते क्यों हो...

मिलेगा प्यार जो दिल में
उतर के जाओ तुम
ये गहरा दरिया है
सतह पे तैरते क्यों हो...

      -- दीपक शर्मा 'सार्थक'







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