तेरी रहगुज़र से गुज़र गए

ख़ामोश सी ख़्वाहिश लिए
वो अधूरेपन की तपिश लिए
जख्मों को दिल में समेटकर
तेरी रहगुज़र से गुज़र गए...

इक राह है तेरे बज़्म की
और इक तरफ मंज़िल मेरी
ये कश्मकश तो देखिए
न इधर गए न उधर गए...

तेरे आब से रौशन जहां
तेरा अक्स है देखू जहाँ
वो फलक हो चाहे ये ज़मी
बस तू नज़र में, जिधर गए...

मेरा हौसला तुझसे ही है
सब फैसला तुझपे ही है
ग़र तू नहीं तो बिखर गए
तेरा साथ है तो सवर गए...

            -- दीपक शर्मा 'सार्थक'

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