हमारी ख़ुद से ठनी हुई है..
है हर तरफ बेख़ुदी का आलम
वो समझ बैठे नाराज़ हैं हम
ख़ुदाया उनको बताए कैसे
हमारी ख़ुद से ठनी हुई है...
ग़रीब के घर को यूँ जलाना
उजाड़ के उसका आशियाना
तुम्हारे इस महल की दिवारे
उसी ज़मी पर बनी हुई है...
है हर तरफ बस तुम्हारे चर्चे
मुकरते हो क्यों यूँ क़त्ल करके
तेरी हथेली की ये उगलियां
मेरे लहू से सनी हुई हैं...
झुका के सर मिलगई मोहब्बत
है ग़र समर्पण मिलेगी उल्फ़त
बिना मोहब्बत के ही जियोगे
तुम्हारी गर्दन तनी हुई है...
-- दीपक शर्मा 'सार्थक'
वो समझ बैठे नाराज़ हैं हम
ख़ुदाया उनको बताए कैसे
हमारी ख़ुद से ठनी हुई है...
ग़रीब के घर को यूँ जलाना
उजाड़ के उसका आशियाना
तुम्हारे इस महल की दिवारे
उसी ज़मी पर बनी हुई है...
है हर तरफ बस तुम्हारे चर्चे
मुकरते हो क्यों यूँ क़त्ल करके
तेरी हथेली की ये उगलियां
मेरे लहू से सनी हुई हैं...
झुका के सर मिलगई मोहब्बत
है ग़र समर्पण मिलेगी उल्फ़त
बिना मोहब्बत के ही जियोगे
तुम्हारी गर्दन तनी हुई है...
-- दीपक शर्मा 'सार्थक'
बहुत सुन्दर शब्द दीपक
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