फलाने - ढमाके
दो ही मित्र हैं मेरे, एक 'फलाने' दूसरे 'ढमाके'।
'फलाने' राष्ट्रवादी हैं जबकी 'ढमाके' सेकुलर हैं। 'फलाने राष्ट्रवादी' बहुत गंभीर रहते हैं, ज्यादा मुस्कुराते नहीं।
उन्हीं के शब्दों में कहें तो-
" ज्यादा हँसने वाले लोग चूतिया होते हैं, ऐसे लोगों की बात में वजन नहीं होता है।"
फलाने राष्ट्रवादी का मानना है कि 'राष्ट्रवाद' गंभीरता के खोल में ही रहता है अत: ज्यादा हँसने मुस्कुराने से राष्ट्रवाद शिथिल हो सकता है।वही ढमाके का हाल बहुत बुरा है, बुरा होना भी चाहिए क्योंकि ढमाके सेकुलर जो ठहरे । वैसे हँसते ढमाके भी नहीं हैं। उनको डर है कि कहीं किसी ने उन्हें हँसते हुए रंगे मुह पकड़ लिया तो लोग ये ना समझ लें कि अच्छे दिन आ गए हैं। इसलिए 'ढमाके सेकुलर' हमेशा उदास रहते हैं। वो चहरे पर मुर्दानगी लिए बसंत में भी पतझड़ सा मुँह बनाए बैठे रहते हैं।
लेकिन असल समस्या ये है की फलाने और ढमाके को एक ही घर में रहना पड़ता है।जहाँ दिक्कत ये है कि 'फलाने राष्ट्रवादी' चाहते हैं घर का माहौल गंभीर रहे, जाहिर है फलाने को गंभीरता पसंद जो है। वहीं ' सेकुलर ढमाके' चाहते हैं कि घर में हर कोई उदास रहे। कोई कभी ख़ुश ना दिखे और घर में अच्छे दिन ना आ पाएं। 'फलाने राष्ट्रवादी' त्याग की बाते करते हैं जबकी 'ढ़माके सेकुलर' दिन-रात चीख-चीख कर बोल रहे हैं की उन्हें बोलने आजादी नहीं है।
जैसे -जैसे समय बीतता जा रहा है, समस्या विकराल होती जा रही है। 'फलाने राष्ट्रवादी' दिनोदिन और गंभीर होते जा रहे हैं, वही 'ढमाके सेकुलर' दिन पर दिन और उदास होते जा रहे हैं। बिचारे घर के लोग तो मुस्कुराना भूल ही गए हैं।क्योंकि जब 'फलाने राष्ट्रवादी' की घर में चलती है तो वो घर को डण्डे की ताकत से गंभीर बना देते हैं ताकि घर में राष्ट्रवाद बना रहे।लेकिन जब घर में 'ढमाके सेकुलर' की चलती है तो वो घर वालों में दुनियां भर का डर एवं असुरक्षा का भाव पैदा करके उदास बना देते हैं।
इधर कुछ दिनों से 'फलाने राष्ट्रवादी' राष्ट्रवाद को लेकर गंभीरता के साथ-साथ भावुक भी रहने लगे हैं।अभी उसी दिन की बात है भावुकतावश फलाने ने ढमाके को अपना समझकर दो तीन कन्टाप(थप्पड़) मार दिए। फिर क्या था, 'ढमाके सेकुलर' को और उदास होने का मौका मिल गया अत: वो और उदास हो गए।
वैसे तो 'फलाने राष्ट्रवादी' का रहन-सहन, खान-पान,पहनावा सभी कुछ पश्चमी सभ्यता के जैसा है। उनके बच्चे भी इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं, पर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद के वो पैदाइसी ठेकेदार हैं। दो पैग विदेशी दारू पीते ही उनके अंदर राष्ट्रवाद हिलोरे मारने लगता है, जो अन्त में 'ढमाके सेकुलर' को हजार गालियां देने के बाद शान्त हो जाता है। 'ढमाके सेकुलर' भी कम नहीं है, वो उदासी की तलवार लिए, डटकर हर अच्छी चीज़ का सामना कर रहे हैं।
हाल ही में मुझे पता चला है कि 'फलाने राष्ट्रवादी' वैज्ञानिक भी हैं, उन्होने 'राष्ट्रोमीटर' नाम की एक मशीन बनाई है, जो 'राष्ट्रवाद' नापती है। अब 'फलाने राष्ट्रवादी', राह चलते किसी भी व्यक्ति को गिराकर, राष्ट्रोमीटर डालकर उसके अंदर के राष्ट्रप्रेम को नाप लेते हैं। अगर किसी व्यक्ति का राष्ट्रप्रेम 'फलाने राष्ट्रवादी' के तय मानक से थोड़ा भी कम होता है तो उसे फलाने के कोप का भाजन बनना पड़ता है। 'ढमाके सेकुलर' मौके की नज़ाक़त भांप कर और उदास हो गए हैं।
इधर कुछ दिनों से फलाने और ढमाके, दोनो लोग मुझसे नाराज़ चल रहे हैं। इसका कारण ये है कि मैं दोनो लोगों से हँसकर बात करता हूँ। 'फलाने राष्ट्रवादी' को मेरी हँसी देखकर लगता है कि मैं राष्ट्रवाद को लेकर न तो गंभीर हूँ और न ही भावुक हूँ, अत: वो मुझसे नाराज़ रहते हैं।
'ढमाके सेकुलर' भी मुझे अपना दुश्मन समझने लगे हैं क्योंकि मेरी हँसी, उनकी उदासी को चोट पहुचाती है।
उन्हें डर है कहीं मेरी हँसी से अच्छे दिन ना आ जाएं।
मुझे भी उनकी फिक्र नहीं है, बस 'घर' की फिक्र है। जिसे फलाने और ढमाके मे मिलकर घर की जगह मरघट बना दिया है।
-- दीपक शर्मा 'सार्थक'
'फलाने' राष्ट्रवादी हैं जबकी 'ढमाके' सेकुलर हैं। 'फलाने राष्ट्रवादी' बहुत गंभीर रहते हैं, ज्यादा मुस्कुराते नहीं।
उन्हीं के शब्दों में कहें तो-
" ज्यादा हँसने वाले लोग चूतिया होते हैं, ऐसे लोगों की बात में वजन नहीं होता है।"
फलाने राष्ट्रवादी का मानना है कि 'राष्ट्रवाद' गंभीरता के खोल में ही रहता है अत: ज्यादा हँसने मुस्कुराने से राष्ट्रवाद शिथिल हो सकता है।वही ढमाके का हाल बहुत बुरा है, बुरा होना भी चाहिए क्योंकि ढमाके सेकुलर जो ठहरे । वैसे हँसते ढमाके भी नहीं हैं। उनको डर है कि कहीं किसी ने उन्हें हँसते हुए रंगे मुह पकड़ लिया तो लोग ये ना समझ लें कि अच्छे दिन आ गए हैं। इसलिए 'ढमाके सेकुलर' हमेशा उदास रहते हैं। वो चहरे पर मुर्दानगी लिए बसंत में भी पतझड़ सा मुँह बनाए बैठे रहते हैं।
लेकिन असल समस्या ये है की फलाने और ढमाके को एक ही घर में रहना पड़ता है।जहाँ दिक्कत ये है कि 'फलाने राष्ट्रवादी' चाहते हैं घर का माहौल गंभीर रहे, जाहिर है फलाने को गंभीरता पसंद जो है। वहीं ' सेकुलर ढमाके' चाहते हैं कि घर में हर कोई उदास रहे। कोई कभी ख़ुश ना दिखे और घर में अच्छे दिन ना आ पाएं। 'फलाने राष्ट्रवादी' त्याग की बाते करते हैं जबकी 'ढ़माके सेकुलर' दिन-रात चीख-चीख कर बोल रहे हैं की उन्हें बोलने आजादी नहीं है।
जैसे -जैसे समय बीतता जा रहा है, समस्या विकराल होती जा रही है। 'फलाने राष्ट्रवादी' दिनोदिन और गंभीर होते जा रहे हैं, वही 'ढमाके सेकुलर' दिन पर दिन और उदास होते जा रहे हैं। बिचारे घर के लोग तो मुस्कुराना भूल ही गए हैं।क्योंकि जब 'फलाने राष्ट्रवादी' की घर में चलती है तो वो घर को डण्डे की ताकत से गंभीर बना देते हैं ताकि घर में राष्ट्रवाद बना रहे।लेकिन जब घर में 'ढमाके सेकुलर' की चलती है तो वो घर वालों में दुनियां भर का डर एवं असुरक्षा का भाव पैदा करके उदास बना देते हैं।
इधर कुछ दिनों से 'फलाने राष्ट्रवादी' राष्ट्रवाद को लेकर गंभीरता के साथ-साथ भावुक भी रहने लगे हैं।अभी उसी दिन की बात है भावुकतावश फलाने ने ढमाके को अपना समझकर दो तीन कन्टाप(थप्पड़) मार दिए। फिर क्या था, 'ढमाके सेकुलर' को और उदास होने का मौका मिल गया अत: वो और उदास हो गए।
वैसे तो 'फलाने राष्ट्रवादी' का रहन-सहन, खान-पान,पहनावा सभी कुछ पश्चमी सभ्यता के जैसा है। उनके बच्चे भी इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं, पर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद के वो पैदाइसी ठेकेदार हैं। दो पैग विदेशी दारू पीते ही उनके अंदर राष्ट्रवाद हिलोरे मारने लगता है, जो अन्त में 'ढमाके सेकुलर' को हजार गालियां देने के बाद शान्त हो जाता है। 'ढमाके सेकुलर' भी कम नहीं है, वो उदासी की तलवार लिए, डटकर हर अच्छी चीज़ का सामना कर रहे हैं।
हाल ही में मुझे पता चला है कि 'फलाने राष्ट्रवादी' वैज्ञानिक भी हैं, उन्होने 'राष्ट्रोमीटर' नाम की एक मशीन बनाई है, जो 'राष्ट्रवाद' नापती है। अब 'फलाने राष्ट्रवादी', राह चलते किसी भी व्यक्ति को गिराकर, राष्ट्रोमीटर डालकर उसके अंदर के राष्ट्रप्रेम को नाप लेते हैं। अगर किसी व्यक्ति का राष्ट्रप्रेम 'फलाने राष्ट्रवादी' के तय मानक से थोड़ा भी कम होता है तो उसे फलाने के कोप का भाजन बनना पड़ता है। 'ढमाके सेकुलर' मौके की नज़ाक़त भांप कर और उदास हो गए हैं।
इधर कुछ दिनों से फलाने और ढमाके, दोनो लोग मुझसे नाराज़ चल रहे हैं। इसका कारण ये है कि मैं दोनो लोगों से हँसकर बात करता हूँ। 'फलाने राष्ट्रवादी' को मेरी हँसी देखकर लगता है कि मैं राष्ट्रवाद को लेकर न तो गंभीर हूँ और न ही भावुक हूँ, अत: वो मुझसे नाराज़ रहते हैं।
'ढमाके सेकुलर' भी मुझे अपना दुश्मन समझने लगे हैं क्योंकि मेरी हँसी, उनकी उदासी को चोट पहुचाती है।
उन्हें डर है कहीं मेरी हँसी से अच्छे दिन ना आ जाएं।
मुझे भी उनकी फिक्र नहीं है, बस 'घर' की फिक्र है। जिसे फलाने और ढमाके मे मिलकर घर की जगह मरघट बना दिया है।
-- दीपक शर्मा 'सार्थक'
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