दो ही मित्र हैं मेरे, एक 'फलाने' दूसरे 'ढमाके'। 'फलाने' राष्ट्रवादी हैं जबकी 'ढमाके' सेकुलर हैं। 'फलाने राष्ट्रवादी' बहुत गंभीर रहते हैं, ज्यादा मुस्कुराते नहीं। उन्हीं के शब्दों में कहें तो- " ज्यादा हँसने वाले लोग चूतिया होते हैं, ऐसे लोगों की बात में वजन नहीं होता है।" फलाने राष्ट्रवादी का मानना है कि 'राष्ट्रवाद' गंभीरता के खोल में ही रहता है अत: ज्यादा हँसने मुस्कुराने से राष्ट्रवाद शिथिल हो सकता है।वही ढमाके का हाल बहुत बुरा है, बुरा होना भी चाहिए क्योंकि ढमाके सेकुलर जो ठहरे । वैसे हँसते ढमाके भी नहीं हैं। उनको डर है कि कहीं किसी ने उन्हें हँसते हुए रंगे मुह पकड़ लिया तो लोग ये ना समझ लें कि अच्छे दिन आ गए हैं। इसलिए 'ढमाके सेकुलर' हमेशा उदास रहते हैं। वो चहरे पर मुर्दानगी लिए बसंत में भी पतझड़ सा मुँह बनाए बैठे रहते हैं। लेकिन असल समस्या ये है की फलाने और ढमाके को एक ही घर में रहना पड़ता है।जहाँ दिक्कत ये है कि 'फलाने राष्ट्रवादी' चाहते हैं घर का माहौल गंभीर रहे, जाहिर है फलाने को गंभीरता पसंद जो ह...