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रमेश वाजपेई विरल

रच रहे इतिहास हैं जो नित्य शिक्षा के जगत में आदि शंकर की तरह निःस्वार्थ सेवा में लगे हैं ज्योति शिक्षा की जलाकर हर लिया तम, हर हृदय से राष्ट्र सेवा में सकल सर्वस्व अर्पित कर रहे हैं बिन किसी अवलंब के ही छू लिया है गगन को भी खुद के ही पुरुषार्थ से वट वृक्ष के जैसे खड़े हैं जटिलता की भीड़ में जो हैं ’विरल’, पर उर सरल प्रतिपल प्रबल आवेग से निर्भीक होकर के बढ़े हैं हो परिस्थिति कोई भी पर नित हंसी अधरों पे जिनके दृष्टि सम्यक, सौम्यता की मूर्ति वो सबको लगे हैं  राम जिनके ईश हैं, वो ’रमेश’ होकर राममय हर ऋतु में वो ऋतुराज बनकर राष्ट रौशन कर रहे हैं                               ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’                        
बदल रही है सोच सभी की युग विज्ञान का आया है महिलाओं ने अपने दम पर सब करके दिखलाया है घर की चार दिवारी से  अब हिम्मत करके निकली है सभी विधाओं में अब स्त्री का परचम लहराया है बाल विवाह, अशिक्षा जैसी जटिल परिस्थिति से लड़कर अपने हक और मर्यादा की फिर आवाज उठाया है निज श्रम के बलबूते पर वो आसमान को छू लेगी महिलाओं का ही ये युग है आज समझ में आया है              ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

अरविंद सिंह

सेतु हैं स्कूल के  हर हेतु वो उपलब्ध होकर प्राण वायु की तरह  नि:स्वार्थ सेवा में लगे हैं ! कष्ट कितने भी हो लेकिन नित हँसी अधरों पे लेकर ग़म खुशी जो भी मिले वो साथ में लेकर चले हैं ! कार्य कोई भी करें ये किंतु नैसर्गिक हैं शिक्षक शैक्षणिक तकनीक में सब वो भली भाँति ढले हैं ! प्रेम के पोखर के ऊपर हैं खिले ’अरविंद’ जैसे वैसी ही अनुभूति से ’अरविंद जी’ हमको मिले हैं !               ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

लखन सिंह

नित समर्पित भाव से शिक्षा की ज्योति को जलाया शिष्य का तम हर रहे कर्तव्य सब अपने निभाकर ! भागीरथी जैसे प्रयासों  से सकल स्कूल सुधरा फल की चिंता भूलकर निष्काम भावो में समाकर ! लक्ष्य जो दुश्वार लगते थे  सभी को अब तलक सब निज परिश्रम से किया पूरा सभी उनको दिखाकर ! रामपुर की भूमि पर वो छा गए लक्ष्मण के जैसे धन्य अभनापुर हुआ ये ’लखन जी’ का साथ पाकर !                ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

विनोद कुमार

हृदय सरल सानिध्य सरल और सरल स्वभाव है जिनका कभी भी व्याकुल न दिखते हर कार्य में दिखे सरलता ! वाद–विवाद से दूर हैं कोसो दिखती नहीं चपलता विषम परिस्थिति में भी जिनमे प्रेम का दीपक जलता ! चंदौली हो या अभनापुर प्रेम ही प्रेम है फलता मितव्ययी, उत्कृष्ट आचरण से व्यक्तिव निखरता सत्य चित्त आनंद में रमकर हास्य ’विनोद’ झलकता विनयशील उन ’विनोद जी’ को पथ पर मिले सफलता                ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

शरद यादव

शब्द तक ही रोष का प्राकट्य सीमित है जहां पर किंतु उर में प्रेम सिंचित और हृदय निष्पाप है  धर्म आडंबर के ऊपर  दृष्टि आलोचक के जैसी पूर्वाग्रह से है दूरी खुदपे नित विश्वास है कार्य के वाहक हैं हर कामों को करते चित्त से वो सूचना प्रौद्योगिकी में हर तरह से पास हैं। जो शशि की भांति चमके ’शरद’ ऋतु की पूर्णिमा में वो ’शरद’ उन्नति करें ये सार्थक की आस है                ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’

सफलता का सूरज

शहर की सबसे पॉश कालोनी का गटर जाम हो जाना एक बड़ी घटना थी। और हो भी क्यों न.. गरीब की बस्ती में, हैजा अगर सौ पचास लोगो को निगल भी जाए, तो किसी का ध्यान नहीं जाता। लेकिन वो ऑफिसर कालोनी थी। जहां का गटर बरसात में जाम हो गया था। इससे पानी सड़क पर आ गया था। और ये एक बड़ी घटना थी। खैर.. उस गटर के अंदर घुस कर, उसमे जमे कचरे को साफ करने के लिए, जल्दी ही किसी मजदूर की जरूरत आन पड़ी थी। और ऐसे में बगल की गंदी बस्ती में रहने वाले नंदू को आनन–फानन में बुलाया गया। नंदू वहां मौके पर पहुंचकर और उस गटर को देख कर वहां खड़े नगर पालिका के कर्मचारी से बोला, "साहब ये तो पूरी तरह चोक हो गया है..इसके अंदर घुस कर सफाई करनी पड़ेगी ?" वो कर्मचारी झुंझलाहट में बोला, " हां, तो इसमें दिक्कत क्या है ?.. इसके अंदर जाओ और साफ करो। वैसे भी ऊपर से बहुत प्रेशर है।" नंदू थोड़ा झिझक कर बोला, " लेकिन साहब इस काम को करने का रुपिया कितना मिलेगा ?" नगर पालिका का कर्मचारी थोड़ा ऐंठ कर बोला, " तुमको बहुत मक्कारी सूझ रही है।500 रुपिया मिलेगा..जितना सबको मिलता है। अगर न करना हो तो बताओ किसी दूस...