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ताजा ख़बरें बासी मर्म

ख़बर 1 - आज चुनाव ड्यूटी की ट्रेनिंग के लिए कर्मचारियों की हज़ारों की संख्या की भीड़ इकठ्ठा करके उनको भीड़ भाड़ के बचकर कोरोना मुक्त चुनाव कराने के निर्देश दिए गए। मर्म- लाल फीता साही  का जलवा है जबकि नेता निरंकुश हैं। ख़बर 2 - कोरोना को देखते हुए सरकार ने निर्णय लिया है कि बच्चे स्कूल नहीं आयेंगे। और शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वो रोज विद्यालय आकर वहां की दरों दीवार को पढ़ाकर उसका चहुंमुखी विकास करें। मर्म- यदि शिक्षकों की भी छुट्टी कर दी गई तो विद्यालय चेक करने के नाम पर उनका शोषण करके धन उगाही कैसे की जाएगी, इसलिए शिक्षकों आ विद्यालय आना जरूरी है। ख़बर 3- 72825 वाली भर्ती को अपने कार्यकाल के पांच साल तक फंसाकर उसका भर्ता बनाने वाले मुख्य विपक्षी दल ने अचानक घोषणा की है कि यदि वो सत्ता में आए तो OPS बहाल कर देंगे। मर्म- पांच साल सत्ता में रहने के दौरान उनकी आत्मा ने उनको नहीं धिक्कारा, अब चुनाव जीतने के लिए सब करने को तैयार हैं। ख़बर 4 - मुख्य विपक्षी दल द्वारा जबसे OPS  बहाल करने की बात कही गई है तबसे सत्ता धारी दल का समर्थन करने वाले सारे भक्त उस पार्टी के अवैतनिक अ...

दिये क्यों जलाये चला जा रहा है

मुझे लगता है कि एक प्रेम को छोड़कर बाकी इस पूरे विश्व की जितनी भी समस्याएं हैं उनके मूल में बढ़ती पाॅपुलेशन है। विचार करके देखिए- गरीबी, पाॅपुलेशन की देन है। बेरोजगारी पापुलेशन की देन है। एक पद के लिए एक लाख लोग मुह फैलाए खड़े हैं। भ्रष्टाचार पाॅपुलेशन की देन है। एक अवसर के पीछे कई लोग लपकना हैं, यही भ्रस्टाचार को जन्म देता है। बढ़ता प्रदुषण पाॅपुलेशन की देन है। बढ़ती आबादी जंगलों नदियों पोखर को खाए जा रही है। शहरीकरण के बढ़ने के साथ-साथ वायुमंडल भी तेजी से दूषित होता जा है। इंसान इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं कि विश्व के आधे से ज्यादा जीव जंतु की प्रजातियां खतरे में आ गई हैं। बढ़ती बीमारियां पाॅपुलेशन की देन है। बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए किसान अन्धाधुन्ध रासायनिक खादों और दवाइयों का प्रयोग फ़सल पैदावार बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। जो कीटनाशक दवाइयाँ अमेरिका और यूरोप में पूरी तरह बैन हैं उनका प्रयोग भारत में धड़ल्ले से हो रहा है। ये ज़हर खाने के साथ इंसान के शरीर में जाकर उसको इन्तहा बीमार कर रहीं हैं।  बीमार होने के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं का ना मिल पाना भी पाॅपुलेशन की देन है। एक-एक ...
तुम्हारा जबसे हुआ है ये दिल  हमारी तबसे कहाँ चली है ! वो शब की जिसमें शरीक तुम हो  तुम्हारी सरगोसोशियों में ही गुम हों  के वक्त ही थम गया हो जैसे  वो शाम तबसे कहाँ ढली है ! तुम्हारा जबसे  ... ये दुनियां है लाख भटकाऐ हमको  मेरी नज़र से छुपाये तुमको  बसा है दिल में वजूद तेरा  जिधर भी जाऊँ तेरी गली है ! तुम्हारा जबसे... लगा धुएँ के गुबार जैसा  सुलग रहा है ये जिस्म ऐसा  ये प्यार की आग ही ऐसी कुछ है  न पूरी तरह बुझी है न ही जली है ! तुम्हारा जबसे... है मतलबी और दिखावटी दुनियां  बनाए बाते बनावटी दुनियां  जो तेरे संग बीते वो पल थे सच्चे  ये दुनियां मुझको सदा छली है ! तुम्हारा जबसे हुआ है ये दिल  हमारी तबसे कहाँ चली है !                 ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

बीमारी और उसके लक्षण

आवेगों का वेग खो जाना ! संवेगों का शिथिल हो जाना ! प्रेम का पाखंड हो जाना ! संयोग वियोग में पाषाण हो जाना ! ये लक्षण है प्रौढ़ता के और प्रौढ होना एक बीमारी है! टेस्टोस्टेरॉन हार्मोंस के श्राव का रुक जाना ! बात-बात पर संस्कारों का भाषण झाड़ना ! किशोर जोड़ो को देखकर नाक भौहें सिकोड़ना ! जबकि गारमेंट स्टोर में खड़ी स्टेचू को भी  हवस भरी नज़र से देखना ! ये लक्षण हैं बुढ़ापे के  और बुढ़ापा एक विकृति है ! छोटे बच्चों के जैसे  खिलखिलाना कर हँसना भूल जाना ! प्रेम के निरंतर बहते झरने का सूख जाना ! केवल दो कौड़ी की राजनीतिक चर्चाओं में टाइम पास करना ! अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा कर बकवास करना ! ये लक्षण हैं मौलिकता के ’जड़’ हो जाने का और ’जड़’ हो जाना मृत्यु है !                   ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

ऐसा देश है मेरा भाग-4

क्या हमने चिंतन करना छोड़ दिया है, लगता तो कुछ ऐसा ही है। अगर ऐसा नहीं होता तो हमको पता होता कि जिस पूजा पद्धति और दर्शन को आज हम सनातन दर्शन मान रहे है, वो मात्र इतना भर नहीं है। जब पूरा यूरोप अपना पेट भरने के लिए खानाबदोश जिंदगी जी रहा था तब तक भारतीय उपमहाद्वीप में ना जाने कितने दर्शन का उद्भव हो चुका था।फिर आखिर ऐसा कैसे हुआ ही हम आधुनिक पूजा पद्धति मात्र को ही अपना एकमात्र दार्शनिक चिंतन समझ कर, उसे ही सनातन मान कर धर्मांध हो गए हैं। दुनियां के बाकी जितने धर्म हैं वो एक पैगंबर और एक किताब के आधार पर ही अपने धर्म की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं जैसे जैसे पैगंबर ईसामसीह और बाइबिल, जैसे पैगंबर मोहम्मद और कुरान, लेकिन सनातनी परम्परा में ये सम्भव नहीं। हालांकि कुछ मूर्ख ऐसा ही साबित करने पर अमादा हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में जितने सारे दार्शनिक विचारों का उद्भव हुआ, उसका एक चौथाई भी विश्व के किसी और हिस्से में नहीं हुआ। यदि कोरी कल्पनाओं पर ना भी जाए तब भी ये मानना पड़ेगा कि समय समय पर भारतीय उपमहाद्वीप में कभी चार्वाक कभी जैन कभी बौद्ध तो कभी वेदांत दर्शन ने उस समय के शासकों और आम जनमानस ...

घूसखोरी की कला

 प्रिय घूसखोरों, चूंकि मैं इस देश का जिम्मेदार नागरिक हूं।इसलिए मेरा ये फर्ज बनता है कि मैं ऐसे लोगों की मदद करूँ जिन्हें हाल ही में नौकरी मिली है और उनको ये नहीं पता है कि रिश्वत कैसे ली जाती है। तो आइये आज आपको बताता हूं कि रिश्वत लेने की सही कला क्या है- पहली और सबसे जरूरी बात..रिश्वत हमेशा उसी काम को करने के लिए लेनी चाहिए जो काम कानूनन सही है। जिस काम को करने के लिए सरकार ने आपकी नियुक्ति की है, उसी कार्य को सही तरीके से करने के लिए रिश्वत लेनी चाहिए। कुछ मूर्ख घूसखोर उस चीज को करने की रिश्वत ले लेते हैं..जो कानूनन उनको नहीं करना चाहिए। ऐसे ही लोग आगे चलकर फंस जाते और अपनी नौकरी गँवा बैठते हैं। अब यहां प्रश्न ये उठता है कि आखिर सही काम को करने के लिए भी घूस कैसे मिल सकती है ?  इसका सबसे आसान तरीका है कि जब भी आपके ऑफिस में कोई अपना लीगल काम लेकर आए तो उस काम को जितना हो सकता है लटकाइए। जैसे उससे बोलिए, "इस फाइल में फलाने ढिमाके काग़ज़ कम हैं..पहले उनको सही करके लाइये।" इस तरह अपना काम लेकर आया व्यक्ति परेशान होगा और काग़ज़ सही करने के चक्कर में लग जाएगा। इसके बाद जब वो द...

मनुष्य की पशुता

सच तो ये है कि  चीता नहीं घुसा तुम्हारे शहर में  बल्कि तुम घुस गए हो  उनके प्राकृतिक आवासों में ! तुम झूठे मक्कार अधरजी भूखे लोग  खा गए हो उनका जंगल  और फैलते जा रहे हो कुकुरमुत्ते के जैसे  शहरीकरण के नाम पे! तुम्हारे बेतरतीब विकास की हवस  लूट रही है पारितंत्र की इज्जत को  तुम्हारे अपेक्षाओं की घनघोर पिपासा  बढ़ती जा रही है निर्लज्जता से! हाँ..एक सच ये भी है  तुम स्वार्थी लोग  अंदर से एक हिंसक पशु ही हो  बस दिखते हो इंसानो से !            ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'