दिये क्यों जलाये चला जा रहा है

मुझे लगता है कि एक प्रेम को छोड़कर बाकी इस पूरे विश्व की जितनी भी समस्याएं हैं उनके मूल में बढ़ती पाॅपुलेशन है।
विचार करके देखिए-
गरीबी, पाॅपुलेशन की देन है।
बेरोजगारी पापुलेशन की देन है। एक पद के लिए एक लाख लोग मुह फैलाए खड़े हैं।
भ्रष्टाचार पाॅपुलेशन की देन है। एक अवसर के पीछे कई लोग लपकना हैं, यही भ्रस्टाचार को जन्म देता है।
बढ़ता प्रदुषण पाॅपुलेशन की देन है। बढ़ती आबादी जंगलों नदियों पोखर को खाए जा रही है। शहरीकरण के बढ़ने के साथ-साथ वायुमंडल भी तेजी से दूषित होता जा है। इंसान इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं कि विश्व के आधे से ज्यादा जीव जंतु की प्रजातियां खतरे में आ गई हैं।
बढ़ती बीमारियां पाॅपुलेशन की देन है। बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए किसान अन्धाधुन्ध रासायनिक खादों और दवाइयों का प्रयोग फ़सल पैदावार बढ़ाने के लिए कर रहे हैं।
जो कीटनाशक दवाइयाँ अमेरिका और यूरोप में पूरी तरह बैन हैं उनका प्रयोग भारत में धड़ल्ले से हो रहा है। ये ज़हर खाने के साथ इंसान के शरीर में जाकर उसको इन्तहा बीमार कर रहीं हैं। 
बीमार होने के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं का ना मिल पाना भी पाॅपुलेशन की देन है। एक-एक हॉस्पिटल में लाखों लोग अच्छे उपचार के लिए तड़प रह मर जा रहे हैं। मरीजों के लिए बेड और दवाइयां नहीं मिल पा रही हैं।
बढ़ता ट्रैफ़िक जाम पापुलेशन की देन है। ये कोई हसीं मज़ाक़ की बात नहीं है।बड़े बड़े महानगरों में रहने वाले आमजनों का एक तिहाई जीवन ट्रैफ़िक जाम में फंस कर बीत रहा है।ऐसा हो भी क्यों न, रोजगार की तलाश में करोड़ों लोग शहरों को ओर भाग रहे हैं। लाखों लोग ठेला लेकर सब्जी समान बेचने के नाम पर फुटपाथ तो फुटपाथ है, सड़कों पर भी खड़े हो गए हैं। अगर इन रेहड़ी सब्जी वालों को सड़कों और फुटपाथ से हटाकर किसी और जगह व्यवस्थित कर भी दिया जाता है तो दूसरे दिन रक्तबीज की तरह उस स्थान पर दस नए लोग और खड़े हो जाते हैं।
इसतरह पाॅपुलेशन के कारण की अच्छी शिक्षा सबको नहीं मिल पा रही है।
कुलमिलाकर कहने का मतलब ये है कि हम सब जनसंख्या विस्फोट का शिकार हो गए हैं।लेकिन ये यहीं तक सीमित रहे तब तक तो ठीक था परंतु ये समस्या एक विकराल रूप लेती जा रही है।
अगर इस समस्या की गंभीरता को समझना हो तो हॉलीवुड स्टार टॉम हंक की मूवी Inferno के विलेन द्वारा जनसंख्या पर दिए गए पांच मिनट के भाषण को सुनकर समझा जा सकता है। 
वो बताता है कि "दुनियां की जनसंख्या को एक अरब तक पहुचने के लिए एक लाख साल लग गए। और अगले सिर्फ सौ सालों में ही ये आबादी बढ़कर दो अरब हो गई। और अगले पचास सालों में यानी 1970 में ये दो अरब का दुगना होकर चार अरब हो गई। और अब वर्तमान समय मे ये इसका भी दुगना होकर आठ अरब हो गई है। इसके बाद मूवी का विलेन अपनी इस बात को साबित करने के लिए 'अल्बर्ट एलेन बार्टलेट' के "बीकर के बैक्टिरिया" के उदाहरण से अपनी बात को समझता है। उसके अनुसार एक बीकर में एक बैक्टिरिया को रखा जाता है जो हर एक मिनट में बंट कर दुगना हो जाता है। अगर उस बीकर में उस एक बैक्टीरिया को ग्यारह बजे डाला जाता है और वो बीकर बारह बजे बैक्टीरिया से पूरा भर जाता है, तो अखिर वो बीकर आधा कितने बजे होगा। इस सवाल का जबाव है ग्यारह बज कर उनसठ मिनट पर वो बीकर आधा भरा होगा। यानी एक मिनट में ही वो आधे से पूरा भर जाएगा।
इस हिसाब से देखा जाए तो अगले चालीस सालों में दुनियां की आबादी बत्तीस अरब हो जाएगी जो पेट भरने और रहने के लिए संघर्ष कर रही होगी। सच ये है कि Inferno मूवी के विलेन द्वारा दिए गए इस भाषण को भले ही एक मूवी का सीन मानकर नजरअंदाज कर दें लेकिन आने वाला सच इससे भी भयानक है।
बिचारे हॉलीवुड के विलेन ही ऐसी गंभीर समस्या को गंभीरता से लेते हैं। मार्वल्स मूवी का मशहूर विलेन "थाइनौस" भी इसीलिए चुटकी बजाकर दुनिया की आधी आबादी को गायब कर देता है।
भारत में तो ऐसी मूवी बनती नहीं है। आजके साठ पैंसठ साल पहले बढ़ती जनसंख्या पर देवानंद की एक मूवी जरूर आई थी। उसका एक गाना बहुत मशहूर हुआ था। गाने के बोल थे-
"ना तेल है ना बाती है न काबू हवा पर है 
दिये क्यूँ जलाये चला जा रहा है।"
इसका भाव ये है कि ना ढंग के संसाधन हैं न ही पेट भरने को रोटी है फिर क्यूँ धड़ाधड़ बच्चे पैदा किए जा रहे हो!
 देखा जाए तो अब ये भी प्रासंगिक नहीं रह गया है। हमारी सरकार अब प्रति यूनिट पांच किलो राशन महीने में दो बार दे रही है। यानी अब बेट भरने की समस्या नहीं है। ये दौर तो और यूनिट बढ़ाने का है ताकि और राशन मिल सके।आखिर हमारा लोकतंत्र हमको जितने चाहो उतने बच्चे पैदा करने की आजादी जो देता है।
एक तरफ लोकतांत्रिक देश भारत है जहां अभी तक जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कोई ठोस काम नहीं हुआ है।वही दूसरी तरफ कम्युनिस्ट देश चीन है जहां दशकों पहले केवल एक बच्चे का कानून सख्ती से लागू किया गया,जिसके सकारात्मक परिणाम अब वहाँ देखने को मिल रहे हैं। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि चीन का क्षेत्रफल भारत से लगभग तीन गुना बड़ा है, और अब जल्दी ही हम चीन को पछाड़ कर विश्व की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश का कीर्तिमान हासिल करने वाले हैं।
बुरा भले लगे लेकिन जब कम्युनिस्ट लोग लोकतंत्र का मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि, "लोकतंत्र में बस खोपड़ियों कि गिनती होती है...उस खोपड़ी के अंदर गोबर भरा है या दिमाग, इससे लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं होता।"
जनसंख्या नियंत्रण जैसे गंभीर विषय पर शिथिलता देख कर उनकी बात सही लगती है।
आखें बंद कर लेने से समस्या बस दिखना बंद हो जाएगी, वो समाप्त नहीं होगी। अभी भी समय है। जनसंख्या नियंत्रण को लेकर एक ठोस नीति और कारगर नीति बनाने की जरूरत है। उसे बनाकर समस्त राजनीतिक पूर्वाग्रह को छोड़ कर शक्ति के साथ लागू करने की जरूरत है।

                                ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

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