मनुष्य की पशुता
चीता नहीं घुसा तुम्हारे शहर में
बल्कि तुम घुस गए हो
उनके प्राकृतिक आवासों में !
तुम झूठे मक्कार अधरजी भूखे लोग
खा गए हो उनका जंगल
और फैलते जा रहे हो कुकुरमुत्ते के जैसे
शहरीकरण के नाम पे!
तुम्हारे बेतरतीब विकास की हवस
लूट रही है पारितंत्र की इज्जत को
तुम्हारे अपेक्षाओं की घनघोर पिपासा
बढ़ती जा रही है निर्लज्जता से!
हाँ..एक सच ये भी है
तुम स्वार्थी लोग
अंदर से एक हिंसक पशु ही हो
बस दिखते हो इंसानो से !
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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