तुम्हारा जबसे हुआ है ये दिल हमारी तबसे कहाँ चली है ! वो शब की जिसमें शरीक तुम हो तुम्हारी सरगोसोशियों में ही गुम हों के वक्त ही थम गया हो जैसे वो शाम तबसे कहाँ ढली है ! तुम्हारा जबसे ... ये दुनियां है लाख भटकाऐ हमको मेरी नज़र से छुपाये तुमको बसा है दिल में वजूद तेरा जिधर भी जाऊँ तेरी गली है ! तुम्हारा जबसे... लगा धुएँ के गुबार जैसा सुलग रहा है ये जिस्म ऐसा ये प्यार की आग ही ऐसी कुछ है न पूरी तरह बुझी है न ही जली है ! तुम्हारा जबसे... है मतलबी और दिखावटी दुनियां बनाए बाते बनावटी दुनियां जो तेरे संग बीते वो पल थे सच्चे ये दुनियां मुझको सदा छली है ! तुम्हारा जबसे हुआ है ये दिल हमारी तबसे कहाँ चली है ! ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
Posts
बीमारी और उसके लक्षण
- Get link
- X
- Other Apps
आवेगों का वेग खो जाना ! संवेगों का शिथिल हो जाना ! प्रेम का पाखंड हो जाना ! संयोग वियोग में पाषाण हो जाना ! ये लक्षण है प्रौढ़ता के और प्रौढ होना एक बीमारी है! टेस्टोस्टेरॉन हार्मोंस के श्राव का रुक जाना ! बात-बात पर संस्कारों का भाषण झाड़ना ! किशोर जोड़ो को देखकर नाक भौहें सिकोड़ना ! जबकि गारमेंट स्टोर में खड़ी स्टेचू को भी हवस भरी नज़र से देखना ! ये लक्षण हैं बुढ़ापे के और बुढ़ापा एक विकृति है ! छोटे बच्चों के जैसे खिलखिलाना कर हँसना भूल जाना ! प्रेम के निरंतर बहते झरने का सूख जाना ! केवल दो कौड़ी की राजनीतिक चर्चाओं में टाइम पास करना ! अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा कर बकवास करना ! ये लक्षण हैं मौलिकता के ’जड़’ हो जाने का और ’जड़’ हो जाना मृत्यु है ! ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
ऐसा देश है मेरा भाग-4
- Get link
- X
- Other Apps
क्या हमने चिंतन करना छोड़ दिया है, लगता तो कुछ ऐसा ही है। अगर ऐसा नहीं होता तो हमको पता होता कि जिस पूजा पद्धति और दर्शन को आज हम सनातन दर्शन मान रहे है, वो मात्र इतना भर नहीं है। जब पूरा यूरोप अपना पेट भरने के लिए खानाबदोश जिंदगी जी रहा था तब तक भारतीय उपमहाद्वीप में ना जाने कितने दर्शन का उद्भव हो चुका था।फिर आखिर ऐसा कैसे हुआ ही हम आधुनिक पूजा पद्धति मात्र को ही अपना एकमात्र दार्शनिक चिंतन समझ कर, उसे ही सनातन मान कर धर्मांध हो गए हैं। दुनियां के बाकी जितने धर्म हैं वो एक पैगंबर और एक किताब के आधार पर ही अपने धर्म की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं जैसे जैसे पैगंबर ईसामसीह और बाइबिल, जैसे पैगंबर मोहम्मद और कुरान, लेकिन सनातनी परम्परा में ये सम्भव नहीं। हालांकि कुछ मूर्ख ऐसा ही साबित करने पर अमादा हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में जितने सारे दार्शनिक विचारों का उद्भव हुआ, उसका एक चौथाई भी विश्व के किसी और हिस्से में नहीं हुआ। यदि कोरी कल्पनाओं पर ना भी जाए तब भी ये मानना पड़ेगा कि समय समय पर भारतीय उपमहाद्वीप में कभी चार्वाक कभी जैन कभी बौद्ध तो कभी वेदांत दर्शन ने उस समय के शासकों और आम जनमानस ...
घूसखोरी की कला
- Get link
- X
- Other Apps
प्रिय घूसखोरों, चूंकि मैं इस देश का जिम्मेदार नागरिक हूं।इसलिए मेरा ये फर्ज बनता है कि मैं ऐसे लोगों की मदद करूँ जिन्हें हाल ही में नौकरी मिली है और उनको ये नहीं पता है कि रिश्वत कैसे ली जाती है। तो आइये आज आपको बताता हूं कि रिश्वत लेने की सही कला क्या है- पहली और सबसे जरूरी बात..रिश्वत हमेशा उसी काम को करने के लिए लेनी चाहिए जो काम कानूनन सही है। जिस काम को करने के लिए सरकार ने आपकी नियुक्ति की है, उसी कार्य को सही तरीके से करने के लिए रिश्वत लेनी चाहिए। कुछ मूर्ख घूसखोर उस चीज को करने की रिश्वत ले लेते हैं..जो कानूनन उनको नहीं करना चाहिए। ऐसे ही लोग आगे चलकर फंस जाते और अपनी नौकरी गँवा बैठते हैं। अब यहां प्रश्न ये उठता है कि आखिर सही काम को करने के लिए भी घूस कैसे मिल सकती है ? इसका सबसे आसान तरीका है कि जब भी आपके ऑफिस में कोई अपना लीगल काम लेकर आए तो उस काम को जितना हो सकता है लटकाइए। जैसे उससे बोलिए, "इस फाइल में फलाने ढिमाके काग़ज़ कम हैं..पहले उनको सही करके लाइये।" इस तरह अपना काम लेकर आया व्यक्ति परेशान होगा और काग़ज़ सही करने के चक्कर में लग जाएगा। इसके बाद जब वो द...
मनुष्य की पशुता
- Get link
- X
- Other Apps
सच तो ये है कि चीता नहीं घुसा तुम्हारे शहर में बल्कि तुम घुस गए हो उनके प्राकृतिक आवासों में ! तुम झूठे मक्कार अधरजी भूखे लोग खा गए हो उनका जंगल और फैलते जा रहे हो कुकुरमुत्ते के जैसे शहरीकरण के नाम पे! तुम्हारे बेतरतीब विकास की हवस लूट रही है पारितंत्र की इज्जत को तुम्हारे अपेक्षाओं की घनघोर पिपासा बढ़ती जा रही है निर्लज्जता से! हाँ..एक सच ये भी है तुम स्वार्थी लोग अंदर से एक हिंसक पशु ही हो बस दिखते हो इंसानो से ! ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
आम्बेडकर नजर से
- Get link
- X
- Other Apps
आम्बेडकर के विषय में कुछ भी लिखने से पहले इतना स्पष्ट कर दूँ कि यहां मैं जो कुछ भी लिखूँगा वो मेरे व्यक्तिगत विचार हैं। "मेरी दृष्टि से आम्बेडकर" का मतलब ही यही है कि मैं अम्बेडकर को कैसे देखता हूं। या यूँ कह लें कि मैं आम्बेडकर कितना समझता हूँ। ये तो मानना ही पड़ेगा कि उनका व्यक्तित्व बहुत ही व्यापक है। उनके समर्थक और अनुयायी से लेकर उनके आलोचक तक का नजरिया उनके प्रति भिन्न-भिन्न हो सकता है। इसलिए मैं अपने विचारों को किसी पर थोपना नहीं चाहता। यहाँ बस मैं यही बताना चाह रहा हूं कि अंबेडकर मुझे कैसे दिखते हैं। आजकल की आधुनिक राजनीति में अम्बेडकर बहुत ट्रेंड कर रहे हैं..हर स्कूल कॉलेज से लेकर नुक्कड चौराहे तक, हर जगह अम्बेडकर दिख जाएंगे। जो व्यक्ति जरा सा भी राजनीति में रुचि रखता है या जिसको थोड़ा भी राजनीति का ताजा ताजा चस्का लगा हो, वो अंबेडकर की फोटो पर माल्यार्पण करता दिख जाएगा। बुद्धू से बुद्धू नेता को भी पता है कि अंबेडकर मतलब भारत का सीधे सीधे 16% वोट बैंक। लेकिन सच ये है कि आजादी के बाद से लेकर सन 1990 के दौर तक अम्बेडकर भारतीय राजनीति में थोड़ी बहुत जगहों को हटा दें तो...
सब पढ़े सब बढ़े
- Get link
- X
- Other Apps
लाख बाधाएं हमारे मार्ग को दुर्गम बनाएं हम निरन्तर ही प्रगति के साथ पथ पर बढ़ रहे हैं ! प्राथमिक शिक्षा सभी को प्राप्त हो मंशा यही थी और संसाधन बहुत सीमित थे पर हिम्मत बड़ी थी छे से चौदह साल के बच्चों को को भी शिक्षित था करना और आलोचक की नजरें भी सभी हम पर टिकी थी किन्तु हम शिक्षक सदा ही लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहे हैं हम निरंतर ही प्रगति के साथ पथ पर बढ़ रहे हैं ! ये समय तकनीक का है, हम नहीं इसमें भी पीछे प्रेरणा दीक्षा या निष्ठा को परस्पर हम हैं सीखे स्वप्न आखों में लिए और लक्ष्य से आगे है जाना बनके हम सब बागवां इस नस्ल को निज तप से सींचे नित नई संभावनाओं से भी ऊपर चढ़ रहे हैं हम निरंतर ही प्रगति के साथ पथ पर बढ़ रहे हैं ! नव कपोलो की तरह बच्चों का बचपन खिल रहा है जो कुपोषण को मिटा दे, एम.डी.एम वो मिल रहा है हर किलोमीटर पे विद्यालय खुले बच्चों की खातिर ज्ञान के सूरज के आगे अब अंधेरा ढल रहा है 'सार्थक' हो सीखना कुछ इस तरह सब पढ़ रहे हैं हम निरंतर ही प्रगति के साथ पथ पर बढ़ रहे हैं ! लाख बाधाएं हमारे म...