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घूसखोरी की कला

 प्रिय घूसखोरों, चूंकि मैं इस देश का जिम्मेदार नागरिक हूं।इसलिए मेरा ये फर्ज बनता है कि मैं ऐसे लोगों की मदद करूँ जिन्हें हाल ही में नौकरी मिली है और उनको ये नहीं पता है कि रिश्वत कैसे ली जाती है। तो आइये आज आपको बताता हूं कि रिश्वत लेने की सही कला क्या है- पहली और सबसे जरूरी बात..रिश्वत हमेशा उसी काम को करने के लिए लेनी चाहिए जो काम कानूनन सही है। जिस काम को करने के लिए सरकार ने आपकी नियुक्ति की है, उसी कार्य को सही तरीके से करने के लिए रिश्वत लेनी चाहिए। कुछ मूर्ख घूसखोर उस चीज को करने की रिश्वत ले लेते हैं..जो कानूनन उनको नहीं करना चाहिए। ऐसे ही लोग आगे चलकर फंस जाते और अपनी नौकरी गँवा बैठते हैं। अब यहां प्रश्न ये उठता है कि आखिर सही काम को करने के लिए भी घूस कैसे मिल सकती है ?  इसका सबसे आसान तरीका है कि जब भी आपके ऑफिस में कोई अपना लीगल काम लेकर आए तो उस काम को जितना हो सकता है लटकाइए। जैसे उससे बोलिए, "इस फाइल में फलाने ढिमाके काग़ज़ कम हैं..पहले उनको सही करके लाइये।" इस तरह अपना काम लेकर आया व्यक्ति परेशान होगा और काग़ज़ सही करने के चक्कर में लग जाएगा। इसके बाद जब वो द...

मनुष्य की पशुता

सच तो ये है कि  चीता नहीं घुसा तुम्हारे शहर में  बल्कि तुम घुस गए हो  उनके प्राकृतिक आवासों में ! तुम झूठे मक्कार अधरजी भूखे लोग  खा गए हो उनका जंगल  और फैलते जा रहे हो कुकुरमुत्ते के जैसे  शहरीकरण के नाम पे! तुम्हारे बेतरतीब विकास की हवस  लूट रही है पारितंत्र की इज्जत को  तुम्हारे अपेक्षाओं की घनघोर पिपासा  बढ़ती जा रही है निर्लज्जता से! हाँ..एक सच ये भी है  तुम स्वार्थी लोग  अंदर से एक हिंसक पशु ही हो  बस दिखते हो इंसानो से !            ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

आम्बेडकर नजर से

आम्बेडकर के विषय में कुछ भी लिखने से पहले इतना स्पष्ट कर दूँ कि यहां मैं जो कुछ भी लिखूँगा वो मेरे व्यक्तिगत विचार हैं। "मेरी दृष्टि से आम्बेडकर" का मतलब ही यही है कि मैं अम्बेडकर को कैसे देखता हूं। या यूँ कह लें कि मैं आम्बेडकर कितना समझता हूँ। ये तो मानना ही पड़ेगा कि उनका व्यक्तित्व बहुत ही व्यापक है। उनके समर्थक और अनुयायी से लेकर उनके आलोचक तक का नजरिया उनके प्रति भिन्न-भिन्न हो सकता है। इसलिए मैं अपने विचारों को किसी पर थोपना नहीं चाहता। यहाँ बस मैं यही बताना चाह रहा हूं कि अंबेडकर मुझे कैसे दिखते हैं। आजकल की आधुनिक राजनीति में अम्बेडकर बहुत ट्रेंड कर रहे हैं..हर स्कूल कॉलेज से लेकर नुक्कड चौराहे तक, हर जगह अम्बेडकर दिख जाएंगे। जो व्यक्ति जरा सा भी राजनीति में रुचि रखता है या जिसको थोड़ा भी राजनीति का ताजा ताजा चस्का लगा हो, वो अंबेडकर की फोटो पर माल्यार्पण करता दिख जाएगा। बुद्धू से बुद्धू नेता को भी पता है कि अंबेडकर मतलब  भारत का सीधे सीधे 16% वोट बैंक। लेकिन सच ये है कि आजादी के बाद से लेकर सन 1990 के दौर तक अम्बेडकर भारतीय राजनीति में थोड़ी बहुत जगहों को हटा दें तो...

सब पढ़े सब बढ़े

लाख बाधाएं हमारे मार्ग को दुर्गम बनाएं  हम निरन्तर ही प्रगति के साथ पथ पर बढ़ रहे हैं ! प्राथमिक शिक्षा सभी को प्राप्त हो मंशा यही थी  और संसाधन बहुत सीमित थे पर हिम्मत बड़ी थी  छे से चौदह साल के बच्चों को को भी शिक्षित था करना  और आलोचक की नजरें भी सभी हम पर टिकी थी  किन्तु हम शिक्षक सदा ही लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहे हैं  हम निरंतर ही प्रगति के साथ पथ पर बढ़ रहे हैं ! ये समय तकनीक का है, हम नहीं इसमें भी पीछे  प्रेरणा दीक्षा या निष्ठा को परस्पर हम हैं सीखे  स्वप्न आखों में लिए और लक्ष्य से आगे है जाना  बनके हम सब बागवां इस नस्ल को निज तप से सींचे नित नई संभावनाओं से भी ऊपर चढ़ रहे हैं  हम निरंतर ही प्रगति के साथ पथ पर बढ़ रहे हैं ! नव कपोलो की तरह बच्चों का बचपन खिल रहा है  जो कुपोषण को मिटा दे, एम.डी.एम वो मिल रहा है  हर किलोमीटर पे विद्यालय खुले बच्चों की खातिर  ज्ञान के सूरज के आगे अब अंधेरा ढल रहा है  'सार्थक' हो सीखना कुछ इस तरह सब पढ़ रहे हैं  हम निरंतर ही प्रगति के साथ पथ पर बढ़ रहे हैं ! लाख बाधाएं हमारे म...

दिल की बात

इस दुनियां में हर व्यक्ति अपने दिल की बात बोलना चाहता हैं। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ लोगो ने अपने दिल की बात कहने का तरीका भी बदल दिया है। आजकल लोग किस प्रकार से अपने दिल की बात बोलते हैं, आज आपको बताता हूं- (1)मज़ाक़-मज़ाक में दिल की बात- आधुनिक दुनियां की सबसे ज्यादा आबादी आजकल मज़ाक में दिल की बात बोलती है। ऐसा करना लोगों की मजबूरी भी बन गई है। असल में आधुनिक दुनियां हर व्यक्ति( खास कर ऐसे लोग जो अंदर ही अंदर दगे जा रहे हैं कि वो बहुत बुद्धिमान हैं, और उनमे कोई कमी हो ही नहीं सकती है) अपनी आलोचना नहीं सुन सकते। ऐसे में आधुनिक सामाज में सच बोलने का एक नया चलन चला है, यानी मजाक मजाक में दिल की बात बोल दो, जिसे सुनकर सामने वाला बुरा ना मान पाए। ये कुछ वैसा ही है जैसा 'कतील शिफ़ाई' ने अपने एक शेर में कहा है- "इस तरह कतील उनसे बर्ताव रहे अपना  वो भी न बुरा माने,दिल का भी कहा करना" मजाक में कहा गया सच सामने वाले को दुविधा में डाल देता है। और इस तरह सच बोलने वाले व्यक्ति के सम्बंध अमुक व्यक्ति से खराब नहीं होते। (2) घुमा फिरा कर बोली गई दिल की बात - इस तरह दिल की बात बोल...

सपने में किसान

ये जो किसान है न  ये खेत में बीज नहीं  सपने बोता है ! दिन भर खेत में करता है काम  रात मे जानवरों से फ़सल को बचाने के लिए  खेत में ही सोता है ! जब कातिक में होगी फ़सल की कटाई  तब धूमधाम से करूंगा  बेटी की सगाई ! इसबार साहूकार से  बीबी के गहने भी छुड़वाऊंगा  उसे खुश करने के लिए  एक जोड़ी पायल भी लाऊंगा ! गांव के ज़मींदार का बेटा  छोटी साइकिल क्या चलाता है  उसका बेटा दिन रात उन्हीं के दरवाजे बना रहता है ! इस बार अगर फ़सल अच्छी हुई  तो ला दूँगा बेटे को  एक वैसी ही साईकिल नई ! मन ही मन ये सोच के  खुश होता है ! ये जो किसान है न  ये खेत में बीज नहीं  सपने बोता है ! लेकिन आ जाती है बाढ़  फ़सल हो जाती है तार तार  सपने टूट के बिखर जाते हैं  सीना दर्द से फट जाता है  पर चहरे पर सख्ती लिए  वो फिर भी नहीं रोता है ! ये जो किसान है न  ये खेत में बीज नहीं  सपने बोता है !          ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

निःशब्द

निःशब्द! है इसके अलावा और कोई शब्द  जो इस दर्द के पैमाने को  नाप सकता है ! स्तब्ध! है इसके अलावा  हृदय में कोई और भाव  जो इस पीड़ा को  आंक सकता है ! ध्वस्त! है कोई अर्थशास्त्री  इस धरती पर  जो इस नुकसान को  जान सकता है ! वीभत्स ! अस्तव्यस्त! खेतों में पानी नहीं  बह रहा है किसानों का रक्त  है कोई ऊपर वाला  जो इस दर्द को  कम कर सकता है !        ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'