सपने में किसान
ये जो किसान है न
ये खेत में बीज नहीं
सपने बोता है !
दिन भर खेत में करता है काम
रात मे जानवरों से
फ़सल को बचाने के लिए
खेत में ही सोता है !
जब कातिक में होगी
फ़सल की कटाई
तब धूमधाम से करूंगा
बेटी की सगाई !
इसबार साहूकार से
बीबी के गहने भी छुड़वाऊंगा
उसे खुश करने के लिए
एक जोड़ी पायल भी लाऊंगा !
गांव के ज़मींदार का बेटा
छोटी साइकिल क्या चलाता है
उसका बेटा दिन रात
उन्हीं के दरवाजे बना रहता है !
इस बार अगर फ़सल अच्छी हुई
तो ला दूँगा बेटे को
एक वैसी ही साईकिल नई !
मन ही मन ये सोच के
खुश होता है !
ये जो किसान है न
ये खेत में बीज नहीं
सपने बोता है !
लेकिन आ जाती है बाढ़
फ़सल हो जाती है तार तार
सपने टूट के बिखर जाते हैं
सीना दर्द से फट जाता है
पर चहरे पर सख्ती लिए
वो फिर भी नहीं रोता है !
ये जो किसान है न
ये खेत में बीज नहीं
सपने बोता है !
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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