मजबूती का नाम महात्मा गाँधी
तुम मजबूरी के पर्यायवाची
कैसे हो सकते हो?
मजबूर तो वो हैं जो
अंदर ही अंदर तुमसे जलते हैं
पर तुम्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते
मजबूर तो वो हैं जो
सदियों से लगे हैं तुम्हारे नाम को मिटाने में
लेकिन तुम्हारी आभा के सामने टिक नहीं सकते
गाँधी!
तुमको मजबूर समझने वाले
असल में मगरूर हैं,
अपनी नासमझ अक्ल पे
तुमको मजबूर समझने वाले,
असल में मजदूर है अपनी वहशी सोच के
गाँधी!
तुम तो दृढ़ हो अपने दिल से
तुम तो बल हो निर्बल के
किसी एक के नहीं तुम हो सबके
कामचोरी भ्रष्टाचार साम्प्रदायिकता को
तिनके की तरह उड़ा दे
तुम्हारे नाम में वो आँधी है
सच तो ये है कि
मजबूती का नाम महात्मा गाँधी है !
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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