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अस्त अफगानिस्तान

मैंने अब तक गिनी चुनी ही इंग्लिश लिटरेचर की बुक पढ़ी हैं जिनमें से एक 'द काइट रनर'भी है। खालिद हुसैनी द्वारा लिखी 'the kite runner' मात्र एक उपन्यास भर नहीं है, ये आपको अफगानिस्तान की अवाम के जड़ से जुड़े द्वन्द्व और वहाँ की कबीलाई जनजाति और गुटों के बीच सदियों से चले आ रहे संघर्ष से भी रूबरू कराती है। खालिद हुसैनी साहब ने the kite runner कुछ इस तरह लिखा है कि ये आपके हृदय के गहरे तल में छुपी संवेदनाओं को झकझोर कर रख देती है। ऐसा हो नहीं सकता कि आप इसको पढ़ कर भावुक न हों। इस किताब की लोकप्रियता का इससे भी अंदाजा लगता है कि बाद मे हॉलीवुड वालों ने इसी नाम से (the kite runner) एक फिल्म भी बनाई। हालाकि फिल्म की स्टोरी पूरी वही है लेकिन उसमें बुक वाली बात नहीं है। खैर अब जब तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। और भारतीय मीडिया हफ्ते भर से यही खबर चीख चीख के बता रहा है।ऐसे मे मेरे दिल मे बार-बार आज से आठ साल पहले पढ़ी the kite runner ही घूम रही है। ये बात तो आश्चर्यचकित करने वाली ही है कि एक तरफ तो एयरपोर्ट और बोर्डर पर अफगानिस्तान की अवाम देश छोड़ने के लिए छटपट...

अति सर्वत्र वर्जयेत्

साक्ष्य तो नहीं है पर सुना है जब दुर्घटनावश कालिदास की जुबान देवी के मंदिर में कट कर गिर गई तो देवी ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा। कालिदास ने विद्योत्मा को माँगा लेकिन जुबान कटी होने के कारण वो विद्या ही बोल पाए। इस तरह देवी उन्हें विद्वान होने का वरदान देकर चली गई। पर कहानी यही खत्म नहीं हुई। कहा जाता है कि कालिदास को इतनी विद्या मिल गई कि वो जो कुछ भी लिखते उससे संतुष्ट नहीं होते। उन्हें अपने लिखे में ही कमियां नजर आने लगती। उनकी मानसिक हालत इतनी खराब हो गई कि वो अपने ज्ञान से ही पागल होने लगे। ये कहानी मुझे मेरी दादी सुनाया करती थी। उन्हीं के अनुसार जब कालिदास बहुत परेशान हो गए तो उनको किसी पंडित ने लगातार "कुंदरू" की सब्जी खाने की सलाह दी।पंडित ने कालिदास को बताया कि कुंदरू की सब्जी खाने से बुद्धि कुंद यानी कम हो जाती है। इस तरह कालिदास ने अपनी बुद्धि को कुंदरू खाकर कंट्रोल किया। खैर ये कहानी सही है या गलत मुझे नहीं पता पर इस कहानी का मेरे बाल मन के ऊपर इतना फर्क़ जरूर पड़ा कि मैंने बचपन में कुंदरू खाना बंद कर दिया था। मैं नहीं चाहता था कि जो थोड़ी बहुत बुद्धि है वो...

आधुनिक चीरहरण

कुरु सभा में चीरहरण के समय  अवसरवादी चुप थे क्योंकि  दुर्योधन उनकी पार्टी का नेता था ! बड़के तीसमार खां भी चुप रहे क्योंकि  दुर्योधन उनकी आय से अधिक  संपत्ति की जांच करवा देता ! केंद्र की सत्ता में बैठे  दुर्योधन के बाप ने भी आखें बंद कर रखी थी क्योंकि  दुर्योधन ही विधानसभा चुनाव जीता सकता था ! बुद्धिजीवी भी चुप ही रहे क्योंकि  दुर्योधन जैसे दुष्ट के मुह लगके  वो अपनी इज्जत नहीं कम करना चाहते थे ! विपक्ष भी थोड़ा बहुत सोशल मीडिया  पर उछल कूद करके शांत हो गया क्योंकि  विपक्ष कायर था और दुर्योधन से डरता था ! बची वहाँ की जनता  तो वो भी चुप रही क्योंकि  कोऊ नृप होय उन्हे का हानी !                         ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'                    ©️

तंत्र के तांत्रिक

लोकतंत्र से 'लोग' गायब  जनतंत्र से 'जन' गायब  प्रजातंत्र से 'प्रजा' गायब  अब बचा है केवल 'तंत्र' ! और बचे हैं उस 'तंत्र' को  वेश्या की तरह अपनी उंगलियों पर  नचाने वाले 'तांत्रिक' ! इस तंत्र की नाली में  कीड़े के जैसे बजबजाते ये तांत्रिक  फैल गए हैं इसकी नस-नस में  और जोंक के जैसे चूस रहे हैं  इस तंत्र का खून ! और इस भीड़तंत्र की भीड़ ने  लिया हैं आखें मूँद !            ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
वो देखते हैं फिल्म  सलमान खान की ! सुनते हैं संगीत  यो-यो हनी का ! देखते हैं न्यूज  आजतक और इंडिया टीवी पर !  पढ़ते हैं न्यूज पेपर  पिछले पेज पर छपी गॉसिप ख़बरें ! आजकल वो सुनने लगे हैं कविताएं  "कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है!" समझने लगे हैं खुद को कवि  और करने लगे हैं तुकबन्दी ! साथ ही पढ़ने लगे है साहित्य  चेतन भगत का! समझने लगे हैं देश का इतिहास  एकता कपूर के सीरियल को देख के! फिर वो झाड़ते हैं ज्ञान  देख की स्थिति पर ! देते हैं भाषण  समाज और संस्कृति पर !           ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

इंसान और ईर्ष्या

कहने को तो ईर्ष्या पर काफी कुछ शोध किया जा चुका है, लेकिन ईर्ष्या कितने प्रकार की है इसपर ज्यादा चर्चा नहीं हुई है।इसलिए ईर्ष्या कितने प्रकार की होती है ये मैं आपको बताता हूं। हालाकि ईर्ष्या कैसी होगी ये पूरी तरह इसपर निर्भर करता है कि ईर्ष्यालु व्यक्ति कैसा है। यानी जितने प्रकार का इंसान है उतने ही प्रकार की ईर्ष्या भी होती है। तो प्रस्तुत है कुछ प्रमुख इंसानो की प्रजाति और उनसे जुड़ी ईर्ष्या- (1) वाचाल ईर्ष्यालु- इस प्रकार के ईर्ष्यालु व्यक्ति का कोई स्तर नहीं होता। ऐसे वाचाल ईर्ष्यालु अपने अंदर की ईर्ष्या को पचा नहीं पाते और जिस किसी व्यक्ति से ये ईर्ष्या करते हैं,उनसे अपने अंदर की ईर्ष्या के भाव ये छुपा नहीं पाते।इसलिए ये जिससे ईर्ष्या करते है ,उसका नाम ले ले कर चारों तरफ उसकी निंदा करते हैं। जिससे सामने वाले व्यक्ति को पता चल जाता है कि ये व्यक्ति मुझसे ईर्ष्या करता है। (2) आदर्श ईर्ष्यालु - सच पूछो तो इस कटेगरी के व्यक्ति आदर्श ईर्ष्यालु होते हैं। ये अपने अंदर की ईर्ष्या को कभी जाहिर नहीं होने देते। ऐसे ईर्ष्यालु व्यक्ति गांधी जी के तीन बन्दरों में से उस बंदर की तरह होते हैं, जिस...

और पेड़ का क्या

एक बार की बात है दो भाई एक गांव में रहते थे। दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था। इसीलिए आपस में मिलकर ही खेती करते थे। लेकिन कुछ समय बाद जब उन दोनों का विवाह हुआ तब उनकी पत्नियों के बीच छोटी छोटी बात को लेकर आपस में लड़ाई झगड़ा शुरू हो गया।जिसके कारण दोनों भाइयों में बटवारा हो गया और दोनों अलग अलग खेती करने लगे। खैर कहानी का मुख्य विषय ये नहीं है कि उनमे कैसे बँटवारा हुआ। क्योंकि ये तो हर घर की कहानी है। अब आते है कहानी के मुख्य हिस्से पर- दोनों भाइयों में बंटवारा होने के कई सालों बाद उन दोनों के बीच एक पेड़ को लेकर विवाद हो गया। विवाद भी ऐसा जिसका निपटारा आसपड़ोस के लोग नहीं कर पा रहे थे। उनके विवाद का कारण एक पेड़ था। बड़े भाई का दावा था कि उस पेड़ को बँटवारे से पहले उसने कहीं बाहर से लाकर लगाया था इसलिए उस पेड़ पर उसका अधिकार है। वही छोटे भाई का कहना था कि चूंकि वो पेड़ उसके हिस्से की जमीन पर लगा था। और उसने पेड़ की सालों तक देखभाल की है इसलिए उस पेड़ पर उसका हक है। इस तरह उन दोनों भाइयों के पेड़ का ये विवाद चर्चा का विषय बन गया। दूर-दूर से न्याय करने वाले लोग इस विवाद का निपटारा करने आ...