तंत्र के तांत्रिक
जनतंत्र से 'जन' गायब
प्रजातंत्र से 'प्रजा' गायब
अब बचा है केवल 'तंत्र' !
और बचे हैं उस 'तंत्र' को
वेश्या की तरह अपनी उंगलियों पर
नचाने वाले 'तांत्रिक' !
इस तंत्र की नाली में
कीड़े के जैसे बजबजाते ये तांत्रिक
फैल गए हैं इसकी नस-नस में
और जोंक के जैसे चूस रहे हैं
इस तंत्र का खून !
और इस भीड़तंत्र की भीड़ ने
लिया हैं आखें मूँद !
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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