फिर साल बीतने वाला है एक दिन हम भी बीते कल का हिस्सा बन कर रह जाएंगे बीते हुए समय का एक किस्सा बनकर रह जाएंगे जी लो इस पल को जी भर के फिर साल बीतने वाला है ! ये बीतने वाला हर लम्हा ...
ये नुमाइश जो जीने की करते हैं वो कोई पूछे भी उनसे वो ज़िन्दा है क्या ! है धुरी से अलग न ज़मीं न फलक देखो जिस ओर भी बेखुदी की झलक ज़िन्दगी जब तलक करते रहते हैं क्या ! कोई पूछे भी उन...
क्यों करते हो मजबूर मुझे अपने पदचिन्ह पे चलने को! क्यों करते हो मजबूर मुझे अपने विचार में पलने को ! जिस दृष्टि से तुमने दुनियां को देखा समझा और जाना है जिस दृष्टि से तुमने बु...
अब इस घरौंदे को बदल दे संबन्ध की दीवार में सीलन बहुत ही आ गई रिश्तो की छत भी रिस रही बूंदे ज़मी पर आ रही जर्जर बहुत ही हो गई मौका है बच के तू निकल ले अब इस घरौंदे को बदल दे ! विश्वा...
मेरे शहर में ! ज़मीन तो महेंगी हैं ज़मीर पर सस्ता है ग़रीब ही बेबस है अमीर तो हंसता है मेरे शहर में ! उससे ही ख़तरा है करीब जो बसता है चोरो की चांदी है शरीफ ही फंसता है मेरे शहर म...
कभी गौर किया है ! कुछ चहरे चीख चीख के बयां करते हैॆ अंदर का खालीपन कभी ध्यान दिया है ! कुछ आंखों में साफ झलकता है अंदर का वीरानापन कभी महसूस किया है ! कुछ लोगो की हंसी ज़ाहिर कर द...
अंधेरे में प्रकाश पुंज की तरह है पूर्णिमा मिटा दे नफ़रतो को प्रेम की धरा है पूर्णिमा जडत्व को हटाके 'चेतना' का जो करे उदय सरल हृदय मृदुल वचन सी निर्झरा है पूर्णिमा तिमिर में ...