प्रेम का फिजिकल डेफिसिट
सपनों के स्टॉक एक्सचेंज रुकने लगे हैं !
हम कमोडिटी बाज़ार जैसे मटेरिलिस्टिक
तुम 'इक्विटी' बाज़ार जैसे मायावी !
हम 'निफ्टी' जैसे सिकुड़े
तुम 'बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज' जैसे हावी !
हमारा प्यार,
'एफ.डी.आई' की तरह स्थिर !
तुम्हारा व्यवहार
'पोर्टफोलियो' जैसे अस्थिर !
उसपर भी तुम्हारी उम्मीदों का
इन्फ्लेशन चढ़ रहा है !
और मुझ गरीब का
'फिज़िकल डेफिसिट' बढ़ रहा है !
अब जब भावनाओं का
'आयात-निर्यात' रुक गया है !
'ग्लोबलाईजेशन' की चमक में
गैरों के फंड पे,
दिल तुम्हारा झुक गया है !
तो क्यों न प्यार के 'बाज़ार' में
हम दोनो ढल जाएं
नये 'कार्पोरेट कैपिटल' की तलाश में
अपने-अपने रास्ते निकल जाएं !
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
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