सर्व धर्मान परित्यज्य
वो जो सदियों से
रुढ़िवाद का स्थापित आकार है
उसमें बदलाव ही तो विकार है !
हाँ मेरे अंदर विरोध है
वो जो परिवर्तन का अवरोध है
बस उसी का तो विरोध है !
हाँ मुझमें द्वंद्व है
नव चेतना जो
परम्पराओ के बोझ से,
मस्तिष्क में बन्द है
इसिलए तो द्वंद्व है !
हाँ मुझमें आक्रोश है
वो जो धर्म की अफीम चाट के
दुनियां बेहोश है
बस उसी का आक्रोश है !
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
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