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क्या जानोगे !

और बताओ क्या जानोगे  पास तो आओ क्या जानोगे ! कहते हो सब जान गए हो बस मगरुर हो, क्या जानोगे ! मैं ही जब अंजान हूं खुद से फिर तुम मुझको क्या जानोगे ! चेहरा देख के दर्द न जाना कह भी दें तो क्या जानोगे ! जब सारा जग जान गया है तब जाना तो क्या जानोगे ! दर्द में जो खुल के हंसता हो उसके दर्द को क्या जानोगे  जान है जबतक जान लो मुझको जान गई तो क्या जानोगे !              © दीपक शर्मा ’सार्थक’           

तब देखेंगे

शोख़ अदाएं तब देखेंगे प्यार दिखाए तब देखेंगे बहक गया हूं नशे में यारों कोई उठाए तब देखेंगे ! सुनता हूं वो बहुत है अच्छा पास तो आए तब देखेंगे ! ख़ता भी मेरी, रूठा भी मैं कोई मनाए तब देखेंगे ! चोर घुसे हैं घर में, कोई  शोर मचाए तब दिखेंगे! वो देखो वो डूब रहा है डूब ही जाए तब देखेंगे ! आग लगी है शहर में अपने कोई बुझाए तब देखेंगे ! घड़ा पाप का अभी है खाली फूट ही जाए तब देखेंगे ! रिश्ते में दरार है आई टूट ही जाए तब देखेंगे !            © दीपक शर्मा ’सार्थक’

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक ! देश पे हमला करने वाले  आतंकी से है हमदर्दी हमले की निंदा यदि करते सतही और लगे है फर्जी दही भिगो के जूते मारूं मन करता है ऑटोमैटिक वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक !! चाटुकार चमचे और चिंटू चाट रहे तलवे आतंकी थू है ऐसी राजनीति पर कायर शठ करते नौटंकी धर्म है इनका ’शरीयत’ लेकिन बनते हैं ये डेमोक्रेटिक  वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक !! राष्ट्र से ऊपर धर्म है जिनका उनका नहीं भरोसा करना जाहिल कट्टर और हिंसक से सदा बना के दूरी रहना गाली नहीं इन्हें दो ’गोली’ मांग रहे एंटीबायोटिक  वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक!!         © दीपक शर्मा ’सार्थक’

प्रेम का प्रोटोकॉल

प्रेम से बढ़कर है दुनियां में  प्रेम का प्रोटोकॉल निभाना ! रही तड़प न पहले जैसी मिलने और बिछड़ने में अब महज़ दिखावा, लफ़्फ़ेबाजी लगे हैं इंप्रेस करने में अब नहीं समर्पण इक दूजे प्रति  लगता है जंजाल पुराना प्रेम से बढ़कर है दुनियां में प्रेम का प्रोटोकॉल निभाना ! (१) अहम भरा है हृदय में जबतक प्रेम कहां रह पाएगा वहम का पर्दा आंखों पे यदि सत्य कहां कह पाएगा लगी प्रतिस्पर्धा आपस में केवल अपना हाल बताना प्रेम से बढ़कर है दुनियां में प्रेम का प्रोटोकॉल निभाना ! (२) अधिकारों के लिए हैं लड़ते प्रेम का लेकर नाम यहां पर स्वार्थ के खातिर प्रेम को अक्सर करते हैं बदनाम यहां पर हृदय अस्थिर खुद का जबकि चाह रहे हड़ताल कराना  प्रेम से बढ़कर है दुनियां में प्रेम का प्रोटोकॉल निभाना ! (३)                    © दीपक शर्मा ’सार्थक’

कलाम ए जावेदा

आज से दो दिन पहले आदरणीया निशा सिंह नवल जी की ग़ज़ल संग्रह ( कलाम-ए-जावेदा) का विमोचन हुआ। मेरा सौभाग्य रहा कि उसी दिन मुझे ये पढ़ने को भी प्राप्त हो गई। विश्वास मानिए एक बार पढ़ना शुरू किया जब तक इसकी सारी ग़ज़लें पढ़ नहीं ली, मुझसे रहा नहीं गया। इस पुस्तक की हर एक ग़ज़ल अपने आप में एक पाठ्यक्रम की तरह है। जिसे आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उतार सकते हैं..कुछ सीख सकते हैं.. ख़ुशी में गुनगुना सकते हैं..द्रवित होने पर इन्हें पढ़कर करुणामय हो सकते हैं।  हृदय से उत्पन्न होने वाले सभी भावों को भावविभोर कर देने वाली एक-एक ग़ज़ल, अपने आप में अनूठी और समाज में व्याप्त सभी विसंगतियों पर कटाक्ष करती नजर आती है। सिक्को में चंद सारा ये संसार बिक गया ईमान बिक गया कहीं किरदार बिक गया मोहताज़ कीमतों की थी हर शय जहान में क़ीमत मिली जो ठीक तो खुद्दार बिक गया सच कहने सुनने का कोई जरिया नहीं बचा चैनल के साथ–साथ ही अखबार बिक गया  मुझे जो नजर आता है निशा जी की हर एक ग़ज़ल का शिल्प बहुत ही सुंदर तो है ही उसके साथ साथ वो बहुत ही सरल भी है।कोई कुछ भी बोले सरलता से बड़ी खूबसूरती कोई हो ही नहीं सकती। जटिल ...

आधुनिक मित्र

इक पुराने मित्र से  हम दौड़ कर मिलने चले  पूर्व की ही भांति सोचा  आज फिर मिल लें गले ! चित्त में थे चित्र सारे  मित्र संग जो पल बिताए  मन था पुलकित और  हृदय से हम नहीं फूले समाए ! किन्तु जब हम मित्र के  सानिध्य में पहुचे अचानक  मित्र का था भाव जैसे  जब्त हो उसकी जमानत ! प्रेम आलिंगन को जैसे  हम तनिक आगे बढ़े तो पास आता देख हमको  दो कदम पीछे हटे वो ! हम चकित होकर के बोले  मित्र देखो हम वही हैं  मित्र बोला तुम वही हो  किन्तु अब हम वो नहीं हैं ! मैं अकेला हूं नहीं अब साथ मेरे 'पद' जुड़ा है  ढेर सारे धन के कारण  कद मेरा बेहद बढ़ा है ! और बड़ा मुझसे भी मेरा  मद है जो मुझमें समाया  गर्व है मुझको की मैंने  ढेर सारा यश कमाया ! अब हमारे मित्र बनने  की नहीं हालत तुम्हारी  तुम कहां हो मैं कहां हूं  भिन्न है स्थिति हमारी ! इसलिए ये मित्रता का ढोल ऐसे न बजाओ यूं गले पड़ने को फूहड़ की तरह ऐसे न धावो ! युग नहीं ये मित्रता का स्वार्थ से संबंध सारे अब नहीं केशव सुदामा मित्रता का बिम्ब प्यारे ! इ...

पंचायत सीजन 3 रिव्यू

पंचायत सीजन ३ को रिव्यू करने से पहले उसके एक सीन का जिक्र करना चाहूंगा ! दृश्य कुछ ऐसा है कि पुराने सचिव जी के ट्रांसफर के बाद नया सचिव फुलेरा ग्राम पंचायत में ज्वाइन करने आता है। प्रहलाद जिसे प्यार से विकास प्रहलाद चा बोलता है, वो उस नए सचिव को अपने विशेष फनी अंदाज में भगा देते हैं। इस घटना के बाद बलिया की डीएम प्रधान मंजू देवी एवम् प्रह्लाद को नाराज होकर बुलाती हैं। बहुत सी वार्तालाप के बाद मंजू देवी ऑफिस से उठकर जा रहे प्रह्लाद को टोक कर बोलती हैं, "प्रह्लाद ! सचिव जी(जिनको रोकने के लिए प्रह्लाद ने नए सचिव को धमकाया था) तो वैसे भी चार पांच महीने में जाने ही वाले थे!" प्रह्लाद (जिसका बेटा हाल ही में शहीद हुआ है) मूड कर मंजू देवी को देख कर बोलता है, "तो चार पांच महीने बाद चले जाएं भाभी ! समय से पहले कोई नहीं जाएगा..कोई नहीं मतलब कोई नहीं !" मंजू देवी और डीएम मोहोदया उसका द्रवित चेहरा देखती रह जाती हैं बैक ग्राउंड में हल्की सी करुणा से भरी बांसुरी का साउंड आता है। और यही ये दृश्य खत्म हो जाता है। इस एक ही लाइन में प्रह्लाद अपने अंदर की पीड़ा, और अथाह शोक में डूबी अप...