एक छोटी घटना जिसका ज़िक्र हमारे परिवार में हो ही जाता है। पड़ोस में रामायण का पाठ हो रहा था।परिवार के पढ़े लिखे लोग रामायण पढ़ रहे थे। गांवों में एक चलन है जो लोग रामायण पढ़ने आते हैं, उनकी विशेष खातिरदारी होती है, कभी चाय बनकर आती है कभी नाश्ता बनकर आता है। इस पूरे घटनाक्रम को एक सात–आठ साल का बच्चा ध्यान से देख रहा था। उस बच्चे ने जिसने अभी तक स्कूल का मुंह नहीं देखा था, अचानक हाथ जोड़ कर मन ही मन भगवान से विनती की, " हे भगवान, हमको भी पढ़ना लिखना आ जाए ताकि हमको भी ऐसे ही चाय नाश्ता मिलने लगे।" उस अबोध बच्चे ने हृदय से भगवान से केवल पढ़ना लिखना इस लिए मांगा था क्योंकि उसके मन में पढ़ने लिखने वालो को मिलने वाले खाने पीने की वस्तुएं देख कर लालच आ गया था। लेकिन शायद ईश्वर ने उसकी पुकार सुन ली। किसे पता था यही बच्चा आगे चलकर डॉक्टर गंगा प्रसाद शर्मा ’गुणशेखर’ के नाम से विख्यात होगा, शिक्षित होकर पी.एच.डी करेगा, लाल बहादुर शास्त्री आईएएस अकादमी में आईएएस को पढ़ाएगा, विदेश में जाकर हिंदी का नाम रौशन करेगा। जब आज के समय मैं ये लिख रहा हूं तो कुछ लोगों को लग रहा होगा कि विदेश जाना...