सब निपुण हो रहे हैं

जंगल का राजा निपुण हो रहा है
रोज बे सिर–पैर के आदेश देने में,
मनमानी करने में !

जंगल निपुण हो रहा है
खानापूर्ति करने में,
नतमस्तक होकर
हर आदेश मानने में !

जंगली निपुण हो रहे है
शिकर करने में,
शिकर को निकलते हैं
कभी अकेले तो कभी झुंड में !

जानवर निपुण हो रहे हैं
अपनी जान बचाने में,
बेतहाशा भाग रहे हैं सड़क पर
डाल कर जान जोखिम में !

जी हां, सब निपुण हो रहे हैं
अपने अपने हुनर में,
अपने अपने काम में !

           ©️ दीपक शर्मा ’सार्थक’






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