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सोचें या न सोचें

पहली और सबसे जरूरी बात, सही से सोचना शुरू करें। इसी तरह कभी-कभी ये भी जरूर सोचे की आखिर आप क्या सोच रहे हैं। या यूं कह लें कि आखिर आप क्या सोचा करते हैं। और अगर आप बहुत बारीकी से सोचने के बाद ये समझने में सफल हो गए कि आखिर आप क्या सोच रहे हैं, तब इसके अगले चरण में आप ये सोचें कि आखिर आप जो सोच रहे हैं वही क्यों सोचते रहते हैं। ये भी सोचें कि कहीं ऐसा तो नहीं..कि आपकी सोच को कोई अदृश्य शक्ति, सोशल मीडिया या न्यूज चैनल, या पोस्टर बैनर के माध्यम से एक विशेष दिशा में सोचने को मजबूर कर रही है। ये भी सोचें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आपकी सोच पर आपका कोई अधिकार ही नहीं हैं। कोई दूर बैठा अपने मायाजाल से आपकी सोच को बुन रहा है। और कहीं ऐसा तो नहीं कि आप अपनी ही सोच के जाल में फंसते जा रहे हैं। ये कुछ उसी तरह घटित होता है जैसे किसी प्रोडक्ट का एडवर्टाइज आप टीवी पर बार-बार न चाहते हुए भी देखते हैं। वो ऐड हज़ारों बार आपकी आखों के सामने से गुजरता हैं। आपके न चाहते हुए भी आपके दिमाग में वो प्रोडक्ट फीड हो जाता है। और इसपर आपका कोई वश भी नहीं है।  इस तरह यदि आप इस मायाजाल को सोचने और समझने में सफल हो...

मानव अधिकारी अमेरिका

विश्वास मानिए जैसे ही महान अमेरीका के वर्तमान विदेश मंत्री जी के मुह से "मानवाधिकार उलंघन" शब्द निकला होगा, वैसे ही हिरोशिमा और नागासाकी नामक शहरों में मारे गए करोड़ों नागरिकों ने असमान से उसके मुह पर थूका होगा। इन दोनों शहरों पर जब अमेरिका द्वारा परमाणु बम का इस्तेमाल किया गया तो पूरे विश्व में इसकी थू थू हुई। युद्ध के जानकार लोगों ने जब उसके इस कृत्य पर सवाल उठाते हुए पूछा कि, " युद्ध में जापान तो वैसे भी हारने ही वाला था फिर आपने परमाणु बम का स्तेमाल क्यूँ किया। तो इस धूर्त अमेरिका ने जवाब दिया कि, "हम इस युद्ध को लंबा नहीं खींचना चाहते थे।" जबकि सच यह है कि इन बम धमाकों की धमक से वो पूरे विश्व को धमकाना चाहता था कि आज से पूरी दुनियां के हम चौधरी हैं। हमसे कोई पंगा नहीं ले सकता। थूका तो पूरे विश्व के मानवाधिकार संगठनो ने इसपर तब भी था जब विश्व युद्ध की आग में दुनियां जल रही थी और ये घटिया कैपिटलिस्ट देश, पूरे विश्व को हथियार बेंच रहा था।पर किया क्या जाये शुरू से ही महान अमेरिका के नेता मुह पर थुकवाने के आदी हो चुके हैं।  मानवाधिकार का हवाला देने पर अमेरिका क...
रची ऋतुराज ने हर डाल पर कलियों की रंगोली  पकी फैसले हैं खेतों में छटा एकदम लगे पीली  गुलाबी रंग गालों का हुआ हुआ उड़ते गुलालो से  लगे मानो प्रकृति ही खुद मनाने को चली होली ! गिरी नफ़रत की दीवारें चले बनकर के सब टोली  ज़हर थी जो ज़बाने वो बनी अब प्रेम की बोली  जो उलझे थे बिना मतलब के इक दूजे से झगड़े में  भुला मतभेद मिलजुलकर मनाएं प्रेम से होली ! बरसता प्रेम फागुन में समेटो भर लो अब झोली  समूची सृष्टि ने मानो इसी दिन आंख है खोली  तरसते होंठ व्याकुल मन हृदय उद्विग्न था जिनका  बना रसमय सकल तन मन हुईं कुछ इस तरह होली !                                    ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

नतीजों का नतीज़ा

वैसे तो भविष्य में क्या होगा इसको लेकर भविष्यवाणी करना मनुष्य के बस के बाहर की बात है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कयास जरूर लगाया जा सकता है। 2022 के पांच राज्यों के नतीजों के आधार पर उसमें भी खासकर उत्तर प्रदेश के नतीजों से आने वाले कल की कुछ झलक जरूर देखने को मिलती है। इन नतीजों से कम-से-कम हमको इतना जरूर पता चलता है कि भविष्य में भारत की राजनीति की दिशा क्या है। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की वापसी कोई मामूली घटना भर नहीं है। ये दर्शाती है कि उत्तर भारत के नागरिकों में किस हद तक भारतीय जनता पार्टी की जड़ें फैल चुकी हैं। हारने के बाद कोई कितना भी मजाक उड़ाए या कमियां निकाले पर अगर गहराई से मूल्यांकन किया जाये तो पता चलेगा की अखिलेश यादव ने बीजेपी के सामने अब तक का सबसे व्यवस्थित और मजबूत चुनाव लड़ा है। अखिलेश यादव ने अपने चुनावी प्रचार में नेतृत्व की उन ऊंचाईयों को छुआ जो किसी भी नेता के लिए आसान नहीं है। छोटे दलों को अपनी पार्टी से जोड़ने से लेकर प्रत्याशियों को टिकट देने तक अखिलेश की सूझबूझ और समझ की पराकाष्ठा को दर्शाता है। इतने बड़े प्रदेश के...

ब्लादिमीर जेलेंस्की के नाम खुला खत

प्रिय  ब्लादिमीर जेलेंस्की, यूक्रेन के राष्ट्रपति  महोदय,           आज से पन्द्रह दिन पहले विश्व के जिस हिस्से से मैं आता हूं.. वहाँ शायद ही आपको कोई पहचानता होगा। पर आज की तारीख में आपकी चर्चा लगभग हर व्यक्ति के ज़बान पर है। और उसपर भी मजेदार बात ये है कि जिन लोगों की बौध्दिक समझ ऐसी है कि वो अपने ही देश के भौगोलिक हिस्से यानी पूर्वोत्तर के राज्यों के नागरिकों को नेपाली..चीनी..कह कर बुलाते हैं।अब वो लोग भी चंद कूड़ा न्यूज चैनलों को देख कर आपको और पुत्तनवा को सलाह दे रहे हैं। आज उसी क्रम में मैं भी आपको कुछ सलाह देना चाहता हूं। महोदय, मैंने आपके बारे में सुना है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति बनने से पहले आप एक कॉमेडियन एक्टर थे। शायद आपकी कॉमेडी से खुश होकर यूक्रेन के नागरिकों ने आपको वहाँ का राष्ट्रपति बना दिया होगा, जिसकी कीमत आज वो चुका रहे हैं। केवल शेखी बघारने और तरह-तरह के वीडियो डालकर अपनी इमेज के चक्कर में आज आपने लाखों मासूम यूक्रेनियन को मरने और मारने पर मजबूर कर दिया है। वर्तमान स्थिति को देख कर साफ़ पता चलता है कि आपके पास कोई कारगर रणनीति ...

चुनावकर्मी की दुर्दशा

चुनाव कर्मियों के लिए बेहतर व्यवस्था की तो खैर पहले ही मुझे उम्मीद नहीं थी..लेकिन ये भी नहीं पता था निर्वाचन के ठेकेदार अधिकारी चुनाव कर्मी को कृमि (कीड़ा) ही समझते हैं। निर्वाचन के एक दिन पहले निर्वाचन सामग्री को कलेक्ट करने और चुनाव कर्मी को पोलिंग बूथ तक ले जाने वाले वाहनों की व्यवस्था को दूर से ही देख कर पता चल रहा था कि निर्वाचन अधिकारी महोदय व्यवस्था को लेकर कितने असंवेदनशील हैं। हजारों की संख्या में कर्मचारी एक ही गेट से अंदर जा रहा था और उसी गेट से EVM लेकर कर्मचारी वापस भी आ रहे थे। भेंड़ बकरियों की तरह लोग एक दूसरे को कचरते हुए उसी से अंदर बाहर जा रहे थे। कुछ अति उत्साही कर्मचारी बाकायदा दीवार कूद के भी जा रहे थे। एक बस पर पांच पांच बूथ की पोलिंग पार्टी और वहां ड्यूटी पर लगी पुलिस टीम भी जा रही थी। अधिकारियों की नजर में वे बस नहीं जैसे पुष्पक विमान था..जिसके बारे में मशहूर है कि उसमें चाहे जितने लोग बैठे एक सीट हमेशा खाली रहती थी। एक बात जो मुझे सबसे ज्यादा खलती है वो ये है कि कर्मचारी भी जानते हैं कि वो इस चुनाव में बहुत परेशान होंगे..लेकिन फिर भी इस परेशानी को सहजता से स्वी...
कयासों के भरोसे हो या अंदाज़े लगाते हो  किसी भी बात की तह तक तुम्हें जाना नहीं आता ! कोई दिल खोल के रख दे, फरक पड़ता नहीं तुमको  समझ कर नासमझ हो या समझना ही नहीं आता ! जहाँ देखो, बिखर जाते हो तिनके की तरह ढह कर  फिसल कर गिर गए हो या संभलना ही नहीं आता ! कोई जिंदादिली दिल में नहीं ऐसा भी क्या जीना  धड़कता ही नहीं दिल या धड़कना ही नहीं आता ! बहुत मजबूत बनते हो मगर कमजोर हो एकदम  गरजते खूब हो लेकिन बरसना ही नहीं आता ! जो दिल पे बोझ हो कोई, करो हल्का उसे कह कर  भरे बैठे हो सीने में छलकना ही नहीं आता !                             ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'